Wednesday, June 5, 2013

Letter to Principal Secretary (Home) for better policing environment

मेरे द्वारा प्रमुख सचिव को प्रेषित पत्र की प्रतिलिपि. आपको प्रतिक्रिया जानना चाहूँगा-

सेवा में,
प्रमुख सचिव (गृह),
उत्तर प्रदेश शासन,
लखनऊ
विषय- जनपद मुजफ्फरनगर की घटना के सन्दर्भ में कुछ वृहद प्रश्न
महोदय,
कृपया आज समाचारपत्रों में श्री रघुराज सिंह भाटी, पुलिस उप निरीक्षक, तैनाती- थाना मीरापुर, जनपद मुजफ्फरनगर द्वारा वहाँ की एसएसपी सुश्री मंजील सैनी द्वारा कथित रूप से उन्हें मोबाइल फोन पर एक मुकदमे के सम्बन्ध में अपशब्दों का प्रयोग करने के कारण क्षुब्ध हो कर जनरल डायरी (जीडी) में पूरे घटनाक्रम को समय दो बज कर पांच मिनट पर जीडी संख्या 29 के माध्यम से अंकित कर नौकरी से त्यागपत्र देने से सम्बंधित समाचारों का सन्दर्भ ग्रहण करें. इसी घटना के परिप्रेक्ष्य में मैं, अमिताभ ठाकुर, उत्तर प्रदेश कैडर का आईपीएस अधिकारी, अपनी व्यक्तिगत (निजी) हैसियत में इस देश के एक जागरूक नागरिक के रूप में यह पत्र आपकी सेवा में आवश्यक कार्यवाही हेतु प्रेषित कर रहा हूँ.

इस समाचार के अनुसार एक तफ्तीश के बारे में एसएसपी मुजफ्फरनगर को श्री राठी, उपनिरीक्षक का आचरण इतना नागवार लगा कि उन्होंने फोन पर ही अपशब्दों का प्रयोग कर दिया. इससे श्री राठी तनाव में आ गए और अपना इस्तीफा लिख कर डीआईजी को भेज दिया.
चूँकि मैं स्वयं भी व्यक्तिगत स्तर पर पुलिस विभाग में अधीनस्थ अधिकारियों के साथ हो रहे कथित दोहरे आचरण के सम्बन्ध में स्थिति में सुधार लाने के प्रयास में संलग्न रहता हूँ, अतः मैंने इन समस्त तथ्यों के दृष्टिगत आज श्री राठी का नंबर ज्ञात किया और करीब दो बजे उअपने मोबाइल नंबर 94155-34526 से उनके मोबाइल नंबर 094106-67166 पर इस प्रकरण पर बात की ताकि मैं पूरी बात समझ सकूँ. श्री राठी ने इस निजी बातचीत में कई महत्वपूर्ण बातें बतायीं. चूँकि इनमे बहुत सी बातें उनके द्वारा विश्वास में बतायी गयी हैं अतः मेरा उन्हें शब्दशः प्रस्तुत करना मैं उचित नहीं समझता, लेकिन कुछ तथ्य जो इस घटना के सम्बन्ध में और वृहत्तर दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, मैं उन्हें न्यायहित में आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूँ.

श्री राठी ने इस घटना की पृष्ठभूमि बताने के बाद मुझे बताया कि जो विवेचना उनके द्वारा की जा रही थी, उसमे उनके सम्बन्ध में एसएसपी को दूसरे पक्ष के लोगों द्वारा कुछ शिकायत की गयी थी. एसएसपी ने इस तफ्तीश के बारे में उनसे फोन से बात की और बात करते-करते फोन पर ही श्री राठी के लिए गाली-गलौज की भाषा का प्रयोग करना शुरू कर दिया. श्री राठी के अनुसार उन्होंने कुछ इस तरह की बात भी कही- “साले, कुत्ते के वच्चे तुम उस कुत्ते के वच्चे (पूर्व में गिरफ्तार हुआ सिपाही) को सपोर्ट कर रहे हो. हरामी हो” आदि-आदि.

श्री राठी के अनुसार वस्तुतः यही वे शब्द और भाषा थी जिनसे वे एकदम से विचलित हो गए. उनका कहना था कि यदि एसएसपी उनके विरुद्ध नियमानुसार कोई भी कार्यवाही करतीं तो उन्हें इसमें कोई दिक्कत नहीं थी पर जिस प्रकार से उन्होंने सार्वजनिक रूप से उन्हें जलील किया और अमर्यादित भाषा का खुलेआम प्रयोग किया, वह उनसे बर्दाश्त नहीं हुआ और उसी मानसिक स्थिति में उन्होंने त्यागपत्र दे दिया. साथ ही सारी बात भी उन्होंने लगभग हूबहू जीडी में दर्ज कर दी.
श्री राठी ने मुझे बताया कि बाद में घटनाक्रम कुछ ऐसे घटे कि उनकी तरफ से इस प्रकरण का पटाक्षेप हो गया, लेकिन इसके बाद भी श्री राठी से बातचीत में वे कल की इस घंटना से अभी भी अंदर तक आहत दिखे. उन्हें यह कष्ट दिखा कि उनका सार्वजनिक रूप से मानमर्दन नहीं होना चाहिए था.

मैं यह नहीं जानता कि समाचारपत्र में छपी बातें और श्री राठी द्वारा कही गयी बातें कितनी सत्य हैं और कितनी असत्य. संभव है कि वे पूरी तरह झूठ बोल रहे हों और यह भी संभव है कि सच बोल रहे हों. पर चूँकि श्री राठी ने स्वयं कहा कि अब यह प्रकरण समाप्त हो गया है, अतः मेरा इस सम्बन्ध में कुछ भी आगे कहने का अधिकार नहीं बचता है. लेकिन फिर भी इस घटना के दृष्टगत इसके वृहत्तर परिप्रेक्ष्य में कुछ बातें कहना चाहूँगा-

1. मुझे अच्छी तरह स्मरण है कि पिछले वर्ष विधान सभा चुनावों के समय श्री अनुराग श्रीवास्तव, तत्कालीन आयुक्त, बस्ती द्वारा कथित रूप से एक आईपीएस अधिकारी श्री मोहित गुप्ता को ब्लडी इडियट, गेट आउट आदि कह दिया गया था. इसके बाद स्वाभाविक रूप से पूरे आईपीएस संवर्ग में उबाल और भूचाल आ गया था और समाचारपत्रों के अनुसार ना जाने कितने आईपीएस अधिकारियों ने आईपीएस एसोसियेशन को इस्तीफा भी भेज दिया था. मैं आईपीएस अधिकारिओं के इस आत्म-सम्मान के भाव का पूर्ण समर्थन और आदर करता हूँ. लेकिन साथ ही यह भी निवेदन करना चाहता हूँ कि हम सबों को यह समझना होगा कि आदर, इज्जत, आत्म-सम्मान सभी लोगों को बराबर प्यारी होती है. यदि आईपीएस अधिकारी अपने आत्म-सम्मान को ले कर जागृत रहते हैं और किसी भी स्थिति में आईएएस अधिकारियों द्वारा अपने आत्म-सम्मान का व्यतिक्रम नहीं चाहते तो उन्हें भी अन्य लोगों के आत्म सम्मान का उतना ही ख्याल रखना पड़ेगा.

2. यह सत्यता है कि कई आईपीएस अधिकारी पुलिस विभाग के नीचे के अधिकारियों के प्रति समान भाव से उनके सम्मान की रक्षा करने में कृत-संकल्प नहीं दिखते हैं. मैं अपने व्यक्तिगत अनुभव से जानता हूँ कि कई आईपीएस अधिकारी अपने विभाग के नीचे के कर्मचारियों और अधिकारियों को अनुचित शब्दों का प्रयोग करने के आदी हैं. मुझे अच्छी तरह याद आता है कि आज से कुछ साल पहले मेरे सामने मेरे तत्कालीन पुलिस महानिरीक्षक ने एक अपर पुलिस अधीक्षक को खुलेआम सूअर का बच्चा इसीलिए कहा था क्योंकि उनके क्षेत्र में एक लूट की बड़ी घटना हो गयी थी. मैं इसके अलावा भी दर्जनों दृष्टांत जानता हूँ जहाँ आईपीएस अधिकारियों द्वारा अधीनस्थ अधिकारियों के प्रति इस प्रकार की अवांछनीय भाषा का प्रयोग करते हैं.

3. यद्यपि अब कोई भी पक्ष इस घटना में कोई अग्रिम कार्यवाही नहीं करना चाह रहा है फिर भी मैं यह निवेदन करूँगा कि कृपया अपनी जानकारी के लिए अपने स्तर से इस घटना की गोपनीय जांच करा लें, ताकि इसे पुलिस विभाग के वरिष्ठ अधिकारी एक सीख के रूप में लेते हुए भविष्य के लिए इस प्रकार की बातचीत और गाली-गलौच से बच सकें और वर्तमान में ऐसे जो दृष्टांत दिखते रहते हैं उनपर पूरी तरह अंकुश लग सके.

4. यह इस दृष्टि से भी अत्यंत आवश्यक प्रतीत होता है कि बदलते परिवेश में पुलिस में एक नयी कार्यसंस्कृति और एक खुले और परस्पर सामंजस्य और विश्वास के माहौल की नितांत आवश्यकता है जो तभी हो सकता है जब इस प्रकार के कथित गाली-गलौज, डांट-फटकार और नीचा दिखाने की संस्कृति की जगह परस्पर स्नेह, विश्वास, तालमेल और एक-दूसरे का सम्मान करने की कार्यसंस्कृति और परिपाटी का पालन होगा.

मैं उपरोक्त घटना को उत्तर प्रदेश पुलिस विभाग में एक नए युग और कार्यसंस्कृति के सूत्रपात के जनक के रूप में देखते गुए यह पत्र किसी की निंदा-प्रशंसा और किसी के खिलाफ कार्यवाही करने-न करने जैसी भावनाओं से पृथक हो कर इस विश्वास के साथ आपको प्रेषित कर रहा हूँ कि आप द्वारा इन समस्त बिंदुओं पर ध्यान देते हुए वर्तमान में पुलिस विभाग में इस प्रकार की जो अकारण डांट-डपट, नीचा दिखाने और कई बार गाली-गलौच करने की स्थितियां विद्धमान हैं, उन्हें दूर करने और उनकी जगह एक नए और खुले माहौल का निर्माण करने का कार्य पूरी तन्मयता से किया जा सके क्योंकि मैं जानता हूँ कि यदि ऊपर के अधिकारियों के स्तर पर इस तरह के आचरण में कमी आएगी तो इसका सीधा असर नीचे के अधिकारियों के आचरण पर भी पड़ेगा, जिससे पुलिस विभाग और बेहतर ढंग से अपने कार्यों का संपादन कर सकेगा.

पत्र संख्या- AT/Muz/Home/01 भवदीय,
दिनांक- 05/06/2013
(अमिताभ ठाकुर)
5/426, विराम खंड,
गोमती नगर, लखनऊ
# 94155-34526

2 comments:

  1. I take this opportunity to congratulate you to have taken up the issue in a larger perspective.
    I always read your comments and as moderator of the group, I always approve them. Since I am not keeping well so not writing in detail now but I will surely write to separately. Best wishes and regards

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  2. Apart from protecting life,liberty and property,the police at all levels need to be sensitized that protecting dignity is as important,and that applies to behaviour towards colleagues as well as citizens.Unfortunately police officers are led to believe that creating an intimidating environment is the one way not only to control crime but also to control subordinates.

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