Friday, June 20, 2014

Copy of FIR about cheating of Brazilian NRI by UPICO



सेवा में,
प्रभारी निरीक्षक,
थाना काकादेव,
जनपद- कानपुर नगर  

महोदय,
       मैं अमिताभ ठाकुर वर्तमान में आईजी/संयुक्त निदेशक, नागरिक सुरक्षा, उत्तर प्रदेश लखनऊ के पद पर तैनात हूँ और आपके समक्ष उत्तर प्रदेश इंडस्ट्रियल कंसल्टेंट्स लिमिटेड (यूपीको), कानपुर पता 5वां तल, कबीर भवन, जीटी रोड, सर्वोदय नगर, थाना काकादेव, कानपुर- 208002 (फोन नंबर 0512-2216135, 2213596 फैक्स- 0512-2242719, वेबसाइट http://www.upico.org/) से जुड़ा एक गंभीर प्रकरण प्रस्तुत कर रहा हूँ जो मुझे मेरे एक परिचित वर्तमान में ब्राजील में निवास कर रहे श्री अमिताभ रंजन द्वारा अवगत कराया गया.
श्री अमिताभ रंजन ने विभिन्न तिथियों में अपने ईमेल
missionamitabh@yahoo.com से मुझे मेरे ईमेल amitabhthakurlko@gmail.com पर एक श्री गौरी शंकर प्रकाश पीरुपल्ले (ईमेल gourisankarprakash@ig.com.br) से जुड़ा प्रकरण बताया.  श्री गौरी शंकर जमशेदपुर, झारखण्ड से रिटायर हो कर 1978 से ब्राजील में बसे हुए हैं.
इन ईमेल के अनुसार दिसंबर
2008 से अप्रैल 2009 के मध्य यूपीको ने ब्राजील में कुछ कार्यक्रम आयोजित किये. इस कार्यक्रम हेतु पैसा भारत सरकार के कॉमर्स मंत्रालय द्वारा वहां किया जाना था. भारत सरकार के निर्देशों और सहयोग के बल पर यूपीको ने ब्राजील में यह वृहद् कार्यक्रम आयोजित किया जिनमे शोरूम, वेयरहाउस तथा अन्य तमाम खर्चे के लिए यूपीको की ओर से जार्डिम, साओ पाउलो, ब्राजील के निवासी श्री मार्को अंतोनियो टोर्रेस कार्वाल्हो नियत किये गए थे. श्री कार्वाल्हो ने अपने स्तर से यूपीको की जानकारी और सहमति से श्री गौरी शंकर प्रकाश को इस कार्य में अपना सहयोगी बनाया और इस प्रकार श्री प्रकाश और श्री कार्वाल्हो ने मिल कर एक साथ यूपीको के लिए ब्राजील में काम किया और इस अवधि में यूपीको को विभिन्न प्रकार की सुविधा मुहैया कराई और इसमें अपने पैसे खर्च किये.
श्री कार्वाल्हो ने अन्य बातों के अलावा श्री फ्रांसिस्का नेलिडा ओस्त्रोविच्ज़, निवासी अवेनिदा एंजेलिका, ब्राजील के साथ दिनांक
01/02/2008 को श्री ओस्त्रविच्ज़ के मकान का लीज एग्रीमेंट किया. इसके अतिरिक्त इस पूरी अवधि में श्री कार्वाल्हो के कई अन्य खर्चे भी हुए. मुझे जो बिल भेजे गए हैं उनमे दिसंबर 2008 से अप्रैल 2009 के 5 महीने के बिजली, प्राकृतिक गैस, वीआईपी होटल बिल, ऑफिस रेंट, टेलेफोन, इन्टरनेट, पेट्रोल, कार पार्किंग, ऑफिस सामग्री, पार्सल आदि के साथ श्री गौरी शंकर प्रकाश के फीस सम्मिलित हैं. इन बिल के साथ तमाम ऐसी रसीदें संलग्न हैं जो श्री प्रकाश की बात को पुख्ता करती हैं.
श्री कार्वाल्हो और श्री गौरी द्वारा श्री परवेज़ अहमद, तत्कालीन कंसल्टेंट को संयुक्त रूप से भेजा गया पत्र दिनांक
16/04/2009 इस हेतु विशेष रूप से महत्वपूर्ण है जिसमे दोनों ने सामूहिक रूप से अवगत कराया है कि कुल 58,750.76 डॉलर श्री कार्वाल्हो के एकाउंट में ट्रांसफर किया जाना था जिसमे श्री कार्वाल्हो और श्री गौरी शंकर द्वारा परस्पर सहमति से श्री कार्वोल्हा के 16,539.43 डॉलर तथा श्री गौरी शंकर प्रकाश के 42,211.33 डॉलर हैं.
इसके बाद श्री गौरी शंकर ने ना जाने कितनी ही बार यूपीको के अधिकारियों को पत्र और ईमेल द्वारा ब्राजील शोरूम एवं वेयरहाउस पर दिसंबर
2008 से अप्रैल 2009 के बीच किये गए उनके खर्च के विषय में अवगत कराया पर यूपीको ने तब से अब तक श्री गौरी शंकर के पैसे देने से मना किया है, जबकि तथ्यात्मक स्थिति यह है कि इस प्रोजेक्ट के लिए कॉमर्स मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा काफी पहले ही आवश्यक फंड रिलीज़ हो चुका है. श्री गौरी शंकर बार-बार यह लिख रहे हैं कि उन्होंने अपने जेब से पैसे खर्च किये थे, ब्राजील में उन्हें इसके लिए काफी ब्याज दर देना पड़ रहा है लेकिन यूपीको इसे पूरी तरह नज़रंदाज़ कर रहा है.
श्री गौरी शंकर का कहना है कि फ़रवरी
2009 में यूपीको के पूर्व एमडी श्री ए के भटनागर (फोन नंबर 09873187789) की जगह श्री विक्रम हंस नए सीएमडी बने और उनके आश्वासन पर भी श्री गौरी शंकर ने बदस्तूर अप्रैल तक अपना काम जारी रखा था. श्री गौरी शंकर ने अपने इन ईमेल में कहा कि श्री विक्रम हंस ने उन्हें वादा किया था कि जुलाई 2009 तक प्रत्येक दशा में उनका पैसा मिल जायेगा. इसके बाद श्री गौरी शंकर लगातार ईमेल और श्री विक्रम हंस के फोन नंबर 09984296555 पर संपर्क करते रहे पर उन्हें अपना पैसा आज तक नहीं मिला जबकि कॉमर्स मंत्रालय ने  जुलाई 2009 में ही ब्राजील प्रोजेक्ट की धनराशि रिलीज़ कर दी थी.  
मैंने इस सम्बन्ध में श्री विक्रम हंस, पूर्व सीएमडी और श्री प्रवीण सिंह, वर्तमान सीएमडी से भी बात की लेकिन उससे कोई नतीजा नहीं निकला. उन दोनों ने कहा कि श्री गौरी शंकर का दावा झूठा और गलत है और उसमे कोई दम नहीं है. उन्होंने कहा कि ब्राजील प्रोजेक्ट के लिए प्राप्त पूरी धनराशि का ऐडजस्टमेंट हो गया है और अब इसमें कोई बात शेष नहीं है. उन्होंने कहा कि इस सम्बन्ध में उनके रिकार्ड्स में श्री गौरी शंकर प्रकाश का कोई भी क्लेम नहीं है और इस प्रकार उनके क्लेम के सम्बन्ध में अब कोई भी चर्चा बेमानी है. उन दोनों की बात से ऐसा लग रहा था कि वे अब इस मुद्दे को पूरी तरह भूल जाना चाहते हैं.
इसके विपरीत श्री ए के भटनागर, पूर्व सीएमडी यूपीको, जिनके समय इस प्रकरण की शुरुवात हुई, ने मुझसे अपनी बातचीत में स्पष्टतया स्वीकार किया कि श्री गौरी शंकर के साथ ठगी की जा रही है, उन्होंने यूपीको के साथ काम किया था, उनका यूपीको पर पैसा बकाया है पर यूपीको उनका पैसा नहीं दे रहा. श्री भटनागर के अनुसार इसके मुख्य बात यह है कि यूपीको को कॉमर्स मंत्रालय से पैसा मिल गया है पर उन्होंने इसे गलत ढंग से इधर-उधर फर्जी खर्चा दिखा कर श्री गौरी शंकर के जायज खर्चे को देने से मना कर रहे हैं. श्री भटनागर ने मुझे बताया कि यूपीको के पूर्व सीएमडी श्री विक्रम हंस सहित कुछ सम्बंधित अधिकारियों ने मिल कर अपना बैलेंस शीट अपनी मर्जी से गलत-सही बना लिया और श्री गौरी शंकर को पैसा नहीं दिया. उन्होंने बताया कि इस मामले में यूपीको द्वारा फर्जी दस्तावेज़ बनाए गए हैं और इनके आधार पर श्री गौरी शंकर के वाजिब हक़ को दरकिनार किया जा रहा है.
श्री भटनागर ने मुझे इस सम्बन्ध में अपने ईमेल ak@monashlimited.com से भेजे कई मेल भी भेजे. इनमे दिनांक 08/08/2009  को श्री विक्रम हंस को भेजे मेल में यह बात स्पष्ट रूप से कहा. साथ ही इसमें अपने पूर्व ईमेल दिनांक 05/08/2009 में भी उन्होंने यह बात कही थी और यह भी बताया था कि इस हेतु सरकारी ग्रांट मिल चुका है. श्री भटनागर ने पुनः अपने मेल दिनांक 13/08/2009 द्वारा यह बात दुहराई थी. उन्होंने साफ़ कहा था कि यदि श्री गौरी शंकर प्रकाश का वाजिब बकाया नहीं दिया गया तो इसके लिए यूपीको जिम्मेदार होगा.
इसके अतिरिक्त श्री गौरी शंकर के ईमेल दिनांक 28/09/2009, 01/10/2009, 04/02/2011 की प्रति मेरे पास है जिनमे उनके द्वारा बार-बार कहा कि श्री विक्रम हंस से फोन नंबर 09984296555 पर बात करने और उनके व्यक्तिगत आश्वासन और के बाद भी उन्हें आज तक अपना पैसा नहीं मिला है. उन्होंने इन मेल में अपने R$ 42.211,33 + R$ 9.280,20 अर्थात R$ 51491,53 { बिना ब्याज } = 30289,14 यूएस डॉलर बकाये की मांग की है.
हाल में श्री अमिताभ रंजन के मेरे संपर्क में आने के बाद और मेरे द्वारा श्री गौरी शंकर प्रकाश की मदद करने का आश्वासन देने के बाद श्री गौरी शंकर ने अपने ईमेल दिनांक 14/06/2014 द्वारा मुझे इस सम्बन्ध में अग्रिम कार्यवाही किये जाने हेतु अधिकृत किया जिसके बाद मैं श्री गौरी शंकर के प्रकाश के R$ 51491,53 { बिना ब्याज } = 30289,14 यूएस डॉलर (जो वर्तमान डॉलर रुपये समतुल्य के अनुसार आज की तिथि को 18.25 लाख रुपये हुए) यूपीको के विभिन्न अधिकारियों द्वारा भारत सरकार से धन प्राप्त हो जाने के बाद भी छलपूर्वक हथिया लेने, इस हेतु अपने एकाउंट बुक में गलत खाता-बही का सृजन करने, कूटरचना, मिथ्या दस्तावेज़ की रचना करने और इस प्रकार सरकारी धन का गबन कर लेने के गंभीर अपराध के सम्बन्ध में यह प्रार्थनापत्र आपके सम्मुख एफआइआर दर्ज किये जाने हेतु प्रस्तुत कर रहा हूँ ताकि श्री गौरी शंकर प्रकाश जैसे एक वरिष्ठ नागरिक, जिन्होंने देश सेवा के जज्बे से ब्राजील में अपना खर्च कर ब्राजील प्रोजेक्ट में अपना पैसा और समय खर्च कर योगदान किया और इसके बदले उन्हें यूपीको, कानपुर के कुछ अधिकारियों द्वारा यूपीको, कानपुर में धोखा मिला, उनके साथ न्याय हो सके और इस मामले में अब तक जो गलत सन्देश जा रहा है उसका समापन हो सके.
निवेदन करूँगा कि श्री गौरी शंकर प्रकाश की ओर से समस्त तथ्य प्रस्तुत करने हेतु मैं निरंतर आपकी सेवा में उपस्थित रहूँगा.

पत्र संख्या-
AT/Brasil/01                                        भवदीय,
दिनांक
-20/06/2014
                                                              (अमिताभ ठाकुर )
                                                           
      5/426, विराम खंड,
                                                            गोमती नगर, लखनऊ

                                                                                                                                                                    # 94155-34526
प्रतिलिपि- वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक, कानपुर नगर को कृपया अपने स्तर से भी प्रभारी निरीक्षक, काकादेव को प्रथम सूचना रिपोर्ट अंकित कर अग्रिम कार्यवाही किये जाने हेतु आदेशित करने के लिए

Monday, June 16, 2014

Letter as regards Sahara Shahar



सेवा में,
नगर आयुक्त,
लखनऊ नगर निगम,
लखनऊ 

विषय- सहारा शहर से सम्बंधित कतिपय अभिलेखों को सूचना का अधिकार अधिनियम में अथवा अन्यथा दिखलाए जाने हेतु

महोदय,
 
      कृपया निवेदन है कि हम अमिताभ ठाकुर तथा डॉ नूतन ठाकुर निवासी 5/426, विराम खंड, गोमती नगर, लखनऊ अपने प्रोफेशनल कार्यों के अलावा लोक जीवन में पारदर्शिता तथा उत्तरदायित्व के क्षेत्र में कार्यरत हैं. हम आपके समक्ष लखनऊ नगर निगम, लखनऊ विकास प्राधिकरण (एलडीए) तथा कथित सहारा शहर से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण तथ्य उद्धृत करते हुए आपसे कतिपय निवेदन कर रहे हैं. हमें विभिन्न स्रोतों से लखनऊ नगर निगम तथा सहारा इंडिया हाउसिंग लिमिटेड के मध्य हुए कुछ अभिलेख प्राप्त हुए हैं जो अपने आप में अत्यंत महत्वपूर्ण हैं.
इनमे 25 पृष्ठों की Licence agreement for development of land भी शामिल है जिसमे 19 पृष्ठ का अग्रीमेंट तथा 6 पृष्ठों का संलग्नक है जो दिनांक 22/10/1994 को श्री बी के सिंह यादव, तत्कालीन मुख्य नगर अधिकारी, नगर निगम, लखनऊ तथा श्री ओ पी दीक्षित, कंट्रोलर, सहारा इंडिया हाउसिंग लिमिटेड के मध्य सम्पादित किया गया था. इस अग्रीमेंट के अनुसार पूर्व में गोमती नगर स्कीम के लिए लखनऊ विकास प्राधिकरण (एलडीए) द्वारा नगर निगम को निगम की जमीन लेने के बदले दी जाने वाली धनराशि वापस नहीं कर सकने के कारण निगम ने एलडीए को दिनांक 05/09/1994 को एक माह में वांछित धनराशि वापस करने का नोटिस दिया या बदले में वह जमीन वापस कर देने का विकल्प दिया. एलडीए ने समझौते के तहत दिनांक 21/09/1994 को शेड्यूल एक में संलग्न समस्त भूमि का स्वामित्व तथा कब्जा हमेशा के लिए लखनऊ नगर निगम को सौंप दिया. उस भूमि में से 170 एकड़ भूमि  पर इस लाइसेंस अग्रीमेंट में समझौता हुआ.
अग्रीमेंट के अनुसार भवन, व्यवसायिक भूमि आदि की जरूरतों के दृष्टिगत नगर निगम ने अपने रिजोल्यूशन संख्या 15 दिनांक 20/08/1994 द्वारा यह भूमि लाइसेंस के आधार पर प्राइवेट बिल्डर्स को अच्छी कॉलोनी बनाने के लिए देने का निर्णय किया था जिसके लिए लोगों को आमंत्रित किया गया था. इसमें सहारा का ऑफ़र सबसे अच्छा पाया गया और इस प्रकार दिनांक 20/08/1994 को नगर निगम के रिजोल्यूशन संख्या 17(1) में प्रदत्त अधिकारों का प्रयोग करते हुए मुख्य नगर अधिकारी ने अपने निर्णय दिनांक 06/10/1994 को सहारा को एलॉटमेंट लैटर जारी कर दिया गया.
दिनांक 22/10/1994  के इस अग्रीमेंट के अनुसार यह भूमि नगर निगम के कब्जे में रहेगी जो उसका एकमात्र स्वामी है. सहारा हाउसिंग इस पर प्लाट तथा भवन बना कर लोगों को अपनी तरफ से एलॉट करेगा, यद्यपि लीज डीड नगर निगम की तरफ से किया जाएगा. इस समझौते के अनुसार उस समय रुपये 125.00 प्रति वर्ग मीटर के हिसाब से कुल रुपये 6,57,80,000/ (छः करोड़ सत्तावन लाख अस्सी हज़ार रुपये) सहारा हाउसिंग को नगर निगम को देने थे. इसके अतिरिक्त इस अग्रीमेंट में कई अन्य शर्तें भी डाली गयी थीं जिसमे बाहरी विकास सहारा द्वारा किया जाना, सहारा द्वारा इस बाहरी विकास के सम्बन्ध में बैंक गारंटी देना आदि शामिल थे. किस प्रकार से पूरी धनराशि दी जायेगी इसका भी तरीका निश्चित किया गया था और पैसा देने में विलम्ब करने पर 18 प्रतिशत ब्याज की भी व्यवस्था की गयी थी. आतंरिक विकास के लिए सहारा को 39 अख रुपये की बैंक गारंटी देने की बात इस अग्रीमेंट में थी.
मौके का ले-आउट प्लान नगर निगम द्वारा नियमों और क़ानून के अनुसार प्रस्तुत किया जाना था.  यह भी कहा गया कि बाहरी और आंतरिक इलाकों के लिए लेआउट प्लान नगर निगम द्वारा तीस दिनों में प्रदान कर दिया जाएगा. अग्रीमेंट में स्पष्ट किया गया था कि यह स्कीम अधिकतम चार साल में पूरी कर ली जायेगी जो भूमि के कब्जा होने के वास्तविक दिन अथवा ले-आउट प्लान, जो भी बाद का हो, से गिनती की जायेगी. यह भी कहा गया कि यदि चार साल की निर्धारित अवधि में पूरा काम नहीं हो सका तो नगर निगम द्वारा एक वाजिब समयावधि की बढ़ोत्तरी की जा सकती है.
अग्रीमेंट में स्पष्ट किया गया कि सहारा द्वारा इस काम को किसी अन्य को आगे सबलेट नहीं किया जाएगा. ऐसा होने पर नगर निगम लाइसेंस निरस्त कर सकता है. शर्त में कहा गया कि यदि सहारा द्वारा कहीं भी शर्तों का उल्लघन किया गया तो मुख्य नगर अधिकारी दस दिनों में लिखित नोटिस जारी करेंगे और सहारा द्वारा फिर भी आदेशों का पालन नहीं करने पर तीस दिन का अग्रिम अवसर प्रदान किया जाएगा. इसके बाद उनके द्वारा अवसर प्रदान करते हुए लाइसेंस निरस्त किया जा सकता है जिसके बाद नगर निगम स्वयं शेष कार्य करेगा. लाइसेंस निरस्त करने पर सहारा द्वारा दिए जाने वाली धनराशि का भी अग्रीमेंट में उल्लेख है.
अग्रीमेंट में स्पष्ट रूप से अंकित किया गया था कि सहारा हमेशा नगर निगम के लाइसेंसी के रूप में ही कार्य करेगा और उसका जो भी अधिकार है वह मात्र प्रोजेक्ट पूरा होने तक रहेगा. स्पष्ट किया गया था कि इस लाइसेंस द्वारा सहारा अथवा उसके उत्तराधिकारियों को किसी भी प्रकार के अधिकार नहीं मिल रहे थे. नगर निगम को आदेशित था कि वह तीस दिवस में कब्ज़ा सहारा को दे देगा. यह भी कहा गया कि किसी भी विवाद की स्थिति में दोनों पार्टी मिल कर आर्बिट्रेटर नियुक्त करेंगे.
संलग्नक के अनुसार ग्राम उजरियांव में कुल 106.37 एकड़ अर्जित भूमि में  99.33 एकड़ सजरा प्लान के अन्दर की भूमि है और ग्राम जियामऊ में 70.5 सजरा प्लान के अन्दर की भूमि है.
इस लाइसेंस अग्रीमेंट के अतिरिक्त 12 पृष्ठों की एक प्रोविजनल लीज डीड दिनांकित 22/10/1994 है जो श्री बी के सिंह यादव तथा श्री ओ पी दीक्षित, सहारा इंडिया हाउसिंग लिमिटेड के मध्य है. यह लीज डीड भी एलडीए द्वारा नगर निगम को धनराशि वापस नहीं दिए जाने के एलडीए को दिनांक 05/09/1994 को दी गयी नोटिस के बाद एलडीए द्वारा समझौते के तहत दिनांक 21/09/1994 को दिनांक 30/12/1992 तथा 02/04/1993 को धारा 6/17 भूमि अध्याप्ति अधिनियम 1894 में गोमतीनगर स्कीम के लिए ग्राम उरयियांव तथा जियामऊ के अधिगृहित शेड्यूल एक के 170 एकड़ भूमि   में से 40 एकड़ भूमि, जिसे ग्रीन बेल्ट के रूप में उपयोग किया जाना है, के नगर निगम को कब्जा सहित सौंपे जाने से सम्बंधित है.
इस लीज डीड के अनुसार नगर निगम ने अपनी मीटिंग दिनांक 20/08/1994 के रिजोयुशन संख्या 15 द्वारा यह निर्धारित किया कि लखनऊ मास्टर प्लान में निर्धारित इस ग्रीन बेल्ट को बेहतर ढंग से विकसित करने हेतु प्राइवेट बिल्डर को दिया जाए. पूर्व में ही एलडीए द्वारा इस ग्रीन बेल्ट को विकसित करने हेतु प्राइवेट बिल्डर आमंत्रित किये गए थे, जिनसे नगर निगम ने आगे बात जारी रखी और सहारा के ऑफ़र को श्रेष्ठतम पाते हुए दिनांक 20/08/1994 को नगर निगम द्वारा रिजोल्यूशन संख्या 17(1) में लिए निर्णय द्वारा मुख्य नगर अधिकारी को प्रदत्त अधिकारी के क्रम में मुख्य नगर अधिकारी के निर्णय दिनांक 06/10/1994 के अनुक्रम में दिनांक 10/10/1994 को सहारा के नाम लैटर ऑफ़ अलोटमेंट जारी कर दिया गया.
इस समझौते के अनुसार उस समय रुपये 1.85 लाख प्रति एकड़ के दर से कुल रुपये 74,00,000/ (चौहतर लाख अस्सी हज़ार रुपये) सहारा हाउसिंग को नगर निगम को देने थे जिसके बाद सहारा को तीस साल की अवधि के लिए लीज अनुमन्य था जो दो बार तीस-तीस साल के लिए बढ़ाया जा सकता था. इसके अतिरिक्त एडवांस वार्षिक लीज रेंट भी रुपये 1,48,000 के दर से दिए जाने थे जिस में विलम्ब होने पर अत्तारह प्रतिशत व्याज का प्रावधान था.
लीज डीड के अनुसार यह कब्ज़ा सहारा को दिया जा चुका था. यह कहा गया था कि सहारा इस भूमि का प्रयोग मात्र लखनऊ मास्टर प्लान के अनुसार ग्रीन बेल्ट बनाए के लिए करेगा और इसका किसी भी प्रकार से व्यवसायिक प्रयोग नहीं किया जाएगा. सहारा को चार वर्ष के अन्दर बाहरी और आतंरिक विकास के साथ यह ग्रीन बेल्ट बनाया जाना निर्धारित था. इसके लिए सहारा अपना लेआउट प्लान नगर निगम को प्रस्तुत करेगा जो दस दिनों के अन्दर इसपर अपना निर्णय कर लेगा.
यह आदेशित था कि नगर निगम और उसके एजेंट लीज की अवधि में ग्रीन बेल्ट में घुसने और उसे चेक करने को हमेशा अधिकृत होंगे और कुछ भी गलत पाए जाने पर नगर निगम सहारा को नोटिस देगा जो वह तीन माह में ठीक करेगा.
इसके अतिरिक्त 24 पृष्ठों की एक लीज डीड दिनांकित 23/06/1995 है जो श्री बी के सिंह यादव तथा श्री आई अहमद, सहारा इंडिया हाउसिंग लिमिटेड के मध्य है. यह लीज डीड पूर्व प्रोविजनल लीज डीड दिनांक 22/10/1994  को अंतिम रूप देने विषय है. इस लीज डीड में स्पष्ट किया गया है कि लीज डीड की समाप्ति पर सहारा द्वारा नगर निगम को सभी प्रकार के किये गए विकास के साथ यह ग्रीन बेल्ट वापस करना पड़ेगा जिसके लिए उसे अलग से कोई मुआवजा नहीं मिलेगा. यह भी कहा गया कि कोई भी विवाद होने की स्थिति में दोनों पक्ष एक आर्बिट्रेटर नियुक्त करेंगे.
उपरोक्त तथ्यों के आलोक में निम्न बातें अत्यंत महत्वपूर्ण हैं-
1.       जी तीव्रता से नगर निगम द्वारा एलडीए को नोटिस देने के बाद एलडीए ने बदले में एक बहुत बड़ा भूखंड नगर निगम को एक माह की निर्धारित अवधि से पूर्व दे दिया और उसे उतनी ही तीव्रता से नगर निगम ने सहारा को दे दिया, वह निश्चित रूप से बहुत स्वाभाविक नहीं जान पड़ता है. इसका कारण यह है कि स्वयं एलडीए एक हाउसिंग एजेंसी है और वह उस भूमि का स्वयं उपयोग नहीं कर के एक निजी कंपनी को क्यों दे रही थी?
2.       इन अभिलेखों से यह भी स्पष्ट नहीं है कि नगर निगम और सहारा के मध्य जो भी टर्म्स एंड कंडीशन निर्धारित किये गए उनका आधार क्या था? जो भी दर इन अग्रीमेंट में हैं, वे प्रथमद्रष्टया उस समय के हिसाब से काफी कम जान पड़ते हैं क्योंकि हाउसिंग योग्य भूमि रुपये 125.00 प्रति वर्ग मीटर के हिसाब से और ग्रीन बेल्ट रुपये 1.85 प्रति एकड़ के हिसाब से निर्धारित किये गए थे, जो उस समय के हिसाब से काफी कम जान पड़ते हैं.
3.       यह तथ्य भी बहुत महत्वपूर्ण है कि जहां नगर निगम ने एलडीए को दिनांक 05/09/1994 को नोटिस दिया और एलडीए ने दिनांक 22/10/1994 को यह 170 एकड़ भूमि सौंपी पर इससे लगभग एक माह पूर्व ही नगर निगम ने अपने रिजोल्यूशन संख्या 15 दिनांक 20/08/1994 द्वारा यह भूमि लाइसेंस के आधार पर प्राइवेट बिल्डर्स को देने का निर्णय कर लिया था. अतः यहाँ यह प्रश्न अत्यंत महत्वपूर्ण हो जाता है कि जब नगर निगम के पास भूमि आने की कोई सम्भावना तक नहीं थी, तब दिनांक 20/08/1994  को ही उसने यह भूमि प्राइवेट बिल्डर को देने का निर्णय कैसे ले लिया?
4.       जब अग्रीमेंट दिनांक 22/10/1994 के अनुसार यह भूमि, जिसका एकमात्र स्वामी नगर निगम है, सहारा हाउसिंग को प्लाट तथा भवन बना कर लोगों को देने के लिए दिया गया था तो ऐसे में उस भूमि पर कथित सहारा शहर कैसे बन गया?
5.       यह सहारा शहर आज से नहीं है बल्कि कम से कम पंद्रह-सत्रह साल से तो स्वयं हम इसे देख रहे हैं. ऐसे में यह प्रश्न स्वाभाविक रूप से उठता है कि यह कैसे हुआ कि जो भूमि आम लोगों को आवासीय सुविधा देने के लिए दी गयी थी, उस पर एक निजी कंपनी का व्यक्तिगत कब्जा हो गया और नगर निगम को इस बीस वर्ष में यह ज्ञात तक नहीं हुआ? साथ ही यह भी अत्यंत आश्चर्यजनक लगता है कि इतने लम्बे समय में नगर निगम ने एक बार भी अपनी भूमि वापस लेने का प्रयास तक नहीं किया?
6.       यही स्थिति ग्रीन बेल्ट की भी है. आज के समय उस पूरे इलाके में सहारा शहर बसा हुआ है जो सहारा इंडिया के निजी कब्जे में है. ऐसे में कोई नहीं जानता कि इसमें ग्रीन बेल्ट कौन सा है और कहाँ है.
इसके अतिरिक्त कुछ अन्य बेहद महत्वपूर्ण तथ्य देखे जाने योग्य हैं-
1.       सहारा शहर द्वारा चार वर्ष में हाउसिंग कॉलोनी विकसित करना था. आज बीस साल बाद भी यह कॉलोनी विकसित क्यों नहीं हुई?
2.       सहारा शहर को चार साल में ग्रीन बेल्ट विकसित करना था. आज बीस साल बाद भी आम आदमी नहीं जानता कि ऐसा कोई ग्रीन बेल्ट विकसित है अथवा नहीं?
3.       यदि ऐसी हाउसिंग कॉलोनी विकसित नहीं हुई तो नगर निगम ने इसके विषय में क्या किया? एलडीए ने इसके लिए क्या किया? उत्तर प्रदेश शासन के नगर विकास विभाग द्वारा इस सम्बन्ध में क्या कार्यवाही हुई?
4.       यदि ऐसा ग्रीन बेल्ट विकसित नहीं हुआ तो नगर निगम ने इसके विषय में क्या किया? एलडीए ने इसके लिए क्या किया? उत्तर प्रदेश शासन के नगर विकास विभाग द्वारा इस सम्बन्ध में क्या कार्यवाही हुई?
5.       यदि नगर निगम, एलडीए तथा नगर विकास विभाग के किसी सम्बंधित उत्तरदायी अधिकारी के स्तर पर इन के सम्बन्ध में लापरवाही हुई तो ऐसे अधिकारियों के विरुद्ध क्या कार्यवाही हुई?
इसी बीच पिछले दिनों सहारा शहर को लेकर कुछ खबरें समाचार पत्रों में प्रकाशित हुईं जिनके छायाप्रति हम संलग्न कर रहे हैं. इनमे नवभारत टाइम्स में दिनांक 11/06/2014 को प्रकाशित पहली खबर “सहारा सिटी और बंधों पर लाएगी मुहर” के अनुसार एलडीए की बुधवार (11/06/2014) को होने वाली बोर्ड बैठक में सबसे अहम् प्रस्ताव सहारा शहर के संशोधित लेआउट का है. इसमें “उठे सवाल” में कहा गया-“नगर निगम ने 270 एकड़ जमीन सहारा को लीज पर दी है. इनमे 100 एकड़ ग्रीन बेल्ट में है और 170 एकड़ पर निर्माण कराया जा चुका है. अब सहारा के प्रस्ताव पर उनके मुताबिक़ लैंड यूज चेंज करने की तैयारी है. इस जमीन का मालिकाना हक़ निगम के पास है. ऐसे में लेआउट का प्रस्ताव भी नगर निगम की ओर से आना चाहिए, न कि सहारा की तरफ से. ऐसे में एलडीए की मंशा पर सवाल उठ रहे हैं.” दिनांक 12/06/2014 को नवभारत टाइम्स में प्रकाशित “सहारा पर एलडीए सहमत, अगली बोर्ड बैठक में गया प्रस्ताव” के अनुसार-“एलडीए को सहारा शहर के लेआउट और वहां हुए निर्माणों पर कोई आपत्ति नहीं है. मानचित्र को स्वीकृत करने के लिए प्राधिकरण ने अपने प्रस्ताव में हरी झंडी दे दी है. हालांकि बोर्ड ने अपना अप्रूवल देने के बजाय इसे अगले बैठक के लिए टाल दिया है. वर्ष 1994 में नगर निगम ने यह जमीन सहारा को लीज पर दी थी. इसके बाद तमाम उतार-चढ़ाव से गुजरते हुए अब संशोधित लेआउट पास होने की उम्मीद बढ़ गयी है. एलडीए ने बोर्ड बैठक में इसके लिए जो प्रस्ताव पेश किया, उसके अनुसार प्रस्तुत किये गए लेआउट को अनुमोदित करने का अनुरोध किया गया है. एलडीए की बैठक में रखे गए प्रस्ताव के अनुसार नगर निगम की तरफ से सहारा को यह जमीन डेवलपमेंट के लिए लाइसेंस पर दी गयी थी. इस पर वर्ष 2005 में एलडीए ने एनओसी दिया था. इसी बीच 26/02/2014  को नगर निगम की तरफ से भेजे गए संशोदित नक़्शे को स्वीकृत किया जाना उचित है. शहरी नियोजन के जानकारों की मानें तो यह लेआउट के साथ सहारा शहर में हुए निर्माण को वैध करने की दिशा में उठाया गया कदम है.”
इन समाचारों के परिप्रेक्ष्य में निम्न तथ्य महत्वपूर्ण हो जाते हैं-
1.       जब भूमि का स्वामित्व नगर निगम के पास है तो नगर निगम लेआउट के बारे में अपनी वैधानिक भूमिका क्यों नहीं निभा रहा है?
2.       जब भूमि का स्वामित्व नगर निगम का है तो इसमें सहारा हाउसिंग स्वतः मालिक की भूमिका में कैसे आ सकता है?
3.       जब भूमि का स्वामित्व नगर निगम का है और नगर निगम ने सहारा को हाउसिंग कॉलोनी विकसित करने को दिया था तो ऐसे में हाउसिंग कॉलोनी से इतर कोई परियोजना पर उसकी स्वीकृति अग्रीमेंट के शर्तों के विपरीत कैसे हो सकती है?
हम निवेदन करेंगे कि हमने ऊपर जो बातें लिखी हैं वह मात्र प्राथमिक अभिलेखों के आधार पर हैं. स्वाभाविक है कि वर्ष 1994-95 के बाद पिछले बीस वर्षों में इस सन्दर्भ में बहुत कुछ घटित हुआ होगा. यह भी संभव है कि इस दौरान नगर निगम और सहारा के मध्य शर्त बदले हों, अथवा नए किस्म के समझौते हुए हों. यह संभव है कि इस मध्य इन दोनों पार्टियों ने अपने-अपने स्टैंड में परिवर्तन किया हो. यह भी संभव है कि जिस जगह प्राथमिक अभिलेखों के आधार पर हम अनियमितताएं देख रहे हैं वहां कोई भी अनियमितता हो ही नहीं.
वास्तविक स्थिति जो भी हो पर हर एक आम आदमी की तरह हमारे म न में भी सहारा शहर को ले कर एक कौतुहल और रहस्य का ताना-बाना है. सभी लोग इस मीलों फैले सहारा शहर को आज भी अत्यंत कौतुहल और अजीब निगाहों से देखते हैं. उन्हें लगता है कि लखनऊ शहर के बीचों-बीच बना यह लम्बा-चौड़ा सहारा शहर अपने अन्दर आवश्यकता से अधिक रहस्यात्मकता समेटे हुए है. यद्यपि तमाम लोग ऐसा सोचते हैं और आपस में ऐसी चर्चा करते हैं पर सत्यता क्या है यह हममे से बहुत कम लोग जानते होंगे. स्वयं हम दोनों एक लम्बे समय तक सहारा शहर के किस्से सुन कर विस्मृत रहा करते थे पर इसकी वैधानिक स्थिति की जानकारी हमें हाल में तब हुई जब हमें भरोसेमंद सूत्रों से उपरिलिखित अभिलेख प्राप्त हुए.
पर जैसा हमने ऊपर बताया, ये अभिलेख मात्र प्रारम्भिक और प्राथमिक अभिलेख हैं जिनके आधार पर कोई भी निश्चयात्मक निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता. यह भी संभव है कि इस प्रकरण में कुछ भी गलत ना हो और सहारा शहर के इर्द-गिर्द नाहक और अनावश्यक रूप से रहस्य का ताना-बाना बुन गया हो. जो भी हो पर यह अवश्य है कि सामाजिक रूप से जागरूक व्यक्ति के रूप में हम इस सहारा शहर और उससे जुड़े सभी पहलुओं के सम्बन्ध में पूरी तरह जानकारी प्राप्त करना चाहते हैं. हम यह चाहते हैं कि यदि चारों ओर जो चर्चाओं का बाज़ार निरंतर गर्म रहता है यदि वह गलत और आधारहीन है तो वह समाप्त हो और यदि उसमे बल है और पूरी प्रक्रिया में गड़बड़ी है तो ऐसी स्थिति को समाप्त किया जाए.
चूँकि यह भूमि मूल रूप से सरकार की है जो एक समय एलडीए की थी और बाद में नगर निगम को दे दी गयी और नगर निगम भी सरकार का ही एक अंग है और नगर निगम की प्रत्येक भूमि सार्वजनिक भूमि है जिसपर हम सभी का बराबर का अधिकार है, अतः इन भूमि के बारे में जानने का हमारा नैसर्गिक अधिकार है. यह हमारी भूमि है जिसके वर्तमान कस्टोडियन नगर निगम हैं. इस रूप में यह अन्य सभी लोगों की तरह हमारा भी व्यक्तिगत मामला है और हम इस भूमि की समस्त स्थिति से अवगत होना चाहते हैं क्योंकि हमने यह निर्णय किया है कि इस भूमि की सम्पूर्ण वास्तविक विधिक स्थिति से भिज्ञ होने के बाद यदि हमें ऐसा प्रतीत होता है कि इस प्रक्रिया में कुछ गड़बड़ है अथवा इस प्रक्रिया में नगर निगम, एलडीए अथवा किसी भी अन्य स्तर पर ऐसे कार्य हुए हैं जो शासकीय हितों के विपरीत थे अथवा शासकीय हितों को कुप्रभावित करने वाले थे तो हम इसके सम्बन्ध में अपने स्तर से अग्रिम कार्यवाही करेंगे ताकि यदि किसी भी स्तर पर ऐसे कोई कार्य हुए हैं जिनसे शासकीय हितों की अनदेखी हुई है तो उनकी भरपाई करते हुए उन्हें दूर किया जा सके और ऐसा करने वालों को चिन्हित कर उनके विरुद्ध आवश्यक कार्यवाही करवाया जा सके.
उपरोक्त सभी तथ्यों के दृष्टिगत आपसे यह निवेदन है कि कृपया लखनऊ के नागरिक के रूप में और व्यापक जनहित में इस प्रकरण में अपनी तरफ से जनहितकारी योगदान देने की हमारी मंशा और इच्छा के मद्देनज़र हमें उपरोक्त सन्दर्भों से जुड़े सभी पत्रवालियों का अवलोकन किये जाने हेतु एक निश्चित समयावधि प्रदान करने की कृपा करें. हम निवेदन करेंगे कि प्रकरण की महत्ता और तात्कालिकता के दृष्टिगत यह समयावधि इस पत्र की प्राप्ति के पंद्रह दिवस के अन्दर प्रदान की जाए जब हम नगर निगम के जिम्मेदार अधिकारियों के समक्ष इन पत्रावलियों का अध्ययन कर जरूरत समझे जाने पर इनमे से आवश्यक अभिलेखों की प्रति सूचना का अधिकार अधिनियम में निर्धारित शुल्क प्रदान कर प्राप्त कर सकें.
हम यह भी निवेदन करेंगे कि जहां तक हमारी जानकारी है इन पत्रावलियों में कोई ऐसे तथ्य नहीं हैं जो किसी भी प्रकार से सूचना का अधिकार अधिनियम में अथवा जनहित में हमें अथवा किसी आम नागरिक को दिखाए जाने को निषिद्ध हों क्योंकि इसमें मात्र वही तथ्य देखने को मांगे जा रहे हैं जो एक सरकारी कार्यालय ने कथित रूप से व्यापक जनहित में एक व्यायसायिक संस्थान के साथ एक कमर्शियल अग्रीमेंट में शासकीय कार्यों के संपादन के दौरान सम्पादित किया है. फिर भी यदि महोदय को यह जान पड़ता है कि सम्बंधित पत्रावली में कुछ ऐसे भी अभिलेख हैं जो सूचना का अधिकार के विभिन्न प्रावधानों के अंतर्गत नहीं दिखाए जा सकते हैं तो उन्हें अलग करते हुए शेष पत्रावली को प्रकरण की महत्ता और तात्कालिकता के दृष्टिगत पत्र की प्राप्ति के पंद्रह दिवस के अन्दर हमें दिखाए जाने हेतु आदेशित करने की कृपा करें ताकि पूरे प्रकरण को समझने और सम्बंधित आवश्यक अभिलेख प्राप्त करने के बाद हम अपने निजी हितों, व्यापक जनहित तथा राज्यहित में अग्रिम कार्यवाही कर सकें.
साथ ही हम यह भी निवेदन करेंगे कि यदि हमारे द्वारा ऊपर अंकित तथ्यों में बल है और वर्ष 1994 में ये अग्रीमेंट होने के बाद आज वर्ष 2014 की अवधि में इन दोनों लीज/अग्रीमेंट के प्रकरणों में एक या अधिक गड़बड़ियां हुई हैं जिसमें शासकीय हितों की अनदेखी की गयी तथा/अथवा सहारा हाउसिंग कंपनी के निजी हितों को त्रुटिपूर्ण तरीके से लाभ पहुंचाया गया तथा/अथवा शासन को वित्तीय नुकसान हुआ तो इसके सम्बन्ध में एक निश्चित अभिमत बनाते हुए तदानुसार आवश्यक विधिसम्मत कार्यवाही करने की कृपा करें.
हम इस सम्बन्ध में अपनी तरफ से निम्न सुझाव प्रस्तुत कर रहे हैं-
1.       इस पूरे प्रकरण को अपनी सम्पूर्णता में समझने के लिए नगर विकास, विधि तथा वित्त के क्षेत्र में विशेषज्ञता रखने वाले कुछ लोगों की एक स्वतंत्र जांच समिति गठित करने की कृपा करें
2.       इस जांच समिति को तीन माह की निर्धारित अवधि में अपनी विस्तृत आख्या आपके सम्मुख प्रस्तुत करने हेतु आदेशित करने की कृपा करें जिसमे प्रारंभिक अग्रीमेंट में शासकीय हितों की अनदेखी, अग्रीमेंट की शर्तों का इस पूरी अवधि में अनुपालन करने अथवा नहीं करने की स्थिति और इस हेतु उत्तरदायित्व तथा वर्तमान विधिक स्थिति पर स्पष्ट अभिमत सम्मिलित हों
3.       इस जांच समिति को वर्तमान समय में भविष्य के लिए सर्वाधिक विधिसम्मत तथा राज्यहित में अनुशंसीय उपाय/कार्य किये जाने के सम्बन्ध में भी निश्चित अभिमत दिए जाने हेतु निर्देशित किया जाए
4.       इस विशेषज्ञ समिति द्वारा प्रस्तुत जांच आख्या के आधार पर समस्त अग्रिम कार्यवाही करने की कृपा करें  
पत्र संख्या- AT/SaharaShahr/01
दिनांक-
16/06/2014                                      भवदीय,

                                                                                                (अमिताभ ठाकुर)              (डॉ नूतन ठाकुर)
                                                                                                                                                5/426, विराम खंड,
                                                      गोमती नगर, लखनऊ

                                                                                                                                                # 094155-34525
                                                                                                                                                nutanthakurlko@gmail.com
प्रतिलिपि-
1.       उपाध्यक्ष, लखनऊ विकास प्राधिकरण, लखनऊ को नगर निगम, लखनऊ की तरह अपने स्तर पर एक विशेषज्ञ जांच समिति बना कर तदनुसार उनकी अनुशंसा के आधार पर अग्रिम कार्यवाही किये जाने हेतु, साथ ही हम दोनों को इस पत्र की प्राप्ति के पंद्रह दिवस के अन्दर व्यापक जनहित में सम्बंधित पत्रावली के अवलोकन हेतु समय प्रदान किये जाने हेतु
2.       प्रमुख सचिव, नगर विकास, उत्तर प्रदेश शासन को कृपया उपरोक्त के सन्दर्भ में आवश्यक कार्यवाही हेतु
प्रतिलिपि- मुख्य सचिव, उत्तर प्रदेश को इस अनुरोध के साथ प्रेषित कि यदि वे उचित समझें तो नगर निगम, लखनऊ, लखनऊ विकास प्राधिकरण तथा नगर विकास विभाग द्वारा अलग-अलग स्तर पर जांच और कार्यवाही कराये जाने के स्थान पर एकीकृत ढंग से इस पूरे प्रकरण पर कार्यवाही किये जाने हेतु उपरोक्त निवेदित विशेषज्ञ जांच समिति का गठन कर अग्रिम आवश्यक कार्यवाही कराये जाने की कृपा करें