Thursday, June 13, 2013

शशांक शेखर सिंह: शहर और सत्ता



जिस व्यक्ति की अंत्येष्ठी होने वाली थी वह कभी मेरे पसंदीदा लोगों में नहीं थे. मैं स्वयं चाहे जैसा भी होऊं- अच्छा या बुरा, नीतिपरक या अनैतिक, पर मेरे मन में हमेशा वैसे लोगों के प्रति ही सम्मान की भावना रही है जो वास्तव में विधि का उसकी सम्पूर्णता में पालन करने में विश्वास रखते हैं. उदाहरण के लिए यदि मैं कोई नाम यकबयक लूँ तो मुझे देवेश चतुर्वेदी की याद आएगी जो पिथोरागढ़ और देवरिया में मेरे जिलाधिकारी रहे थे और जिनके लिए कानून से बड़ा कुछ नहीं दिखता था.

मैंने शशांक शेखर सिंह, जिन्हें बहुधा ट्रिपल एस नाम से भी पुकारा जाता था, के बारे में जितना भी सुना था, उससे हमेशा उनकी इमेज से कुछ कटा-कटा सा रहता था. मेरी सोच में वे एक ऐसे व्यक्तित्व का प्रतिनिधित्व करते थे जो कानून के लिए नहीं बना था बल्कि जिनके लिए स्वयं क़ानून अपने आप को बदल दिया करता था. फिर मैं अकेला ऐसा आदमी नहीं था जो उनके बारे में इस तरह सोचता हो. नौकरशाही में एक बड़ा हिस्सा अपनी निजी बातचीत में इस तरह के विचार रखता दिख जाता था.

लेकिन जैसी कहावत है- “सफलता से बड़ा कोई मन्त्र नहीं” और शशांक शेखर ने उत्तर प्रदेश और उनकी राजधानी लखनऊ यानि कि हमारे इस शहर पर कुछ इस प्रकार राज किया जैसा विरले ही नौकरशाह को अवसर मिला हो.

वर्ष 2007-2012 की अवधि ने उनकी इस ख्याति में और भी श्रीवृद्धि की और इस दौरान यदि लखनऊ का कोई एक नौकरशाह दिल्ली या अन्य प्रदेशों में जाना जाता था तो वे थे शशांक शेखर. यदि कहें तो वे इस शहर की सत्ता और ताकत के प्रतिनिधि बन गए थे. लखनऊ राजधानी बनने के समय से ही उत्तर प्रदेश की राजनैतिक और प्रशासनिक ताकत का केन्द्र माना जाता रहा है और शशांक शेखर में एक साथ प्रशासनिक और राजनैतिक ताकत का भरपूर मिश्रण खुलेआम दिखता था. यदि हम इस रूप में देखें तो वे इस शहर की बुनियादी सोच और चरित्र के शानदार प्रतिनिधि बन कर छाए रहे थे.

जब उनकी आकस्मिक मौत की खबर आई तो इसने अन्य लोगों की तरह मुझे भी विस्मृत कर दिया. भावना का जो ज्वार मुझमे आया वह उस हद तक सहानुभूति और लगाव के कारण नहीं बल्कि मृत्यु से जुडी अजीबोगरीब कशिश, भयावहता और सम्मोहन से जुड़ा हुआ था.

जब मैं कल दफ्तर से घर लौट रहा था तो भैंसाकुंड, जो एक बार पुनः इस शहर की एक खास निशानी है और शहर का खामोश हस्ताक्षर भी, पर भारी भीड़ देख कर समझ गया कि ये शशांक शेखर की अंत्येष्ठी से जुड़े लोग हैं.

यहाँ मैंने एक बार पुनः यह समझा कि कोई व्यक्ति शशांक शेखर के प्रति व्यक्तिगत कैसी भी भावना रखता हो पर सच्चाई यही है कि वे उन लोगों में रहे जिन्होंने इस शहर की नब्ज को पहचाना और यहाँ अपनी बुद्धि, विवेक, प्रतिभा और मेहनत से ताकत का सूत्र समझा और उसे हासिल किया. उनके शव के इर्द-गिर्द लिप्त माहौल खुदबखुद यह बता रहा था कि मरने वाला व्यक्ति जोई साधारण शख्सियत नहीं था बल्कि रसूखवाला था, वही रसूख जिसे हासिल करने के लिए पूरे प्रदेश से लोग यहाँ आते हैं पर हर कोई उतना सफल नहीं होता जितने शशांक शेखर हुए.

शशांक शेखर चले गए- शहर का एक और ताकतवर आदमी भैंसाकुंड वासी हो गया लेकिन शहर की आपाधापी और सफलता की चाह तो निरंतर चलती रहेगी. आखिर नवाबों की यह नगरी आज भी सत्ता का केन्द्र जो है.

No comments:

Post a Comment