Monday, June 10, 2013

Complaint letter to the CIC, Lucknow



सेवा में,
मा० मुख्य सूचना आयुक्त,
उत्तर प्रदेश,
लखनऊ
विषय- सूचना धारक पुलिस महानिरीक्षक कार्मिक, पुलिस महानिदेशक कार्यालय, उत्तर प्रदेश के विरुद्ध सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 की धारा 18 की उपधारा 1 के अंतर्गत शिकायती पत्र
महोदय,
           
कृपया निवेदन है कि मैंने अपने पत्र संख्या- AT/RTI-APR/DGP/07  दिनांक-27/05/2013 द्वारा जन सूचना अधिकारी, पुलिस महानिदेशक कार्यालय से पुलिस महानिरीक्षक कार्मिक, पुलिस महानिदेशक कार्यालय, उत्तर प्रदेश के द्वारा प्रेषित पत्र दिनांक 15/05/2013 (छायाप्रति संलग्न की गयी थी) में उल्लिखित उत्तर प्रदेश शासन के पत्र दिनांक 15/02/2012 की छायाप्रति प्रदान करने जा निवेदन किया गया था.
मुझे इस सम्बन्ध में जन सूचना अधिकारी के पत्र दिनांक 06/06/2013 में उल्लिखित सूचना धारक पुलिस महानिरीक्षक (कार्मिक), पुलिस महानिदेशक कार्यालय, उत्तर प्रदेश के पत्र दिनांक 03/06/2013 द्वारा यह कहा गया है कि यदि मुझे शासन के पत्र की प्रति प्राप्त करनी है तो मैं इसे शासन से ही प्राप्त करूँ.
सूचना धारक पुलिस महानिरीक्षक (कार्मिक) का यह उत्तर पूरी तरह जन सूचना अधिकार अधिनियम का खुला मखौल है जिसमे इस महत्वपूर्ण अधिनियम के प्रावधानों का स्पष्टतया उल्लंघन किया गया है.
मैं मा० आयुक्त महोदय का ध्यान विशेषकर इस अधिनियम की धारा 18 की ओर दिलाना चाहूँगा. इस धारा की उपधारा (1) के अनुसार-
Subject to the provisions of this Act, it shall be the duty of the Central Information Commission or State Information Commission, as the case may be, to receive and inquire into a complaint from any person,—
(a) who has been unable to submit a request to a Central Public Information Officer or State Public Information Officer, as the case may be, either by reason that no such officer has been appointed under this Act, or because the Central Assistant Public Information Officer or State Assistant Public Information Officer, as the case may be, has refused to accept his or her application for information or appeal under this Act for forwarding the same to the Central Public Information Officer or State Public Information Officer or senior officer specified in sub-section (1) of section 19 or the Central Information Commission or the State Information Commission, as the case may be;
(b) who has been refused access to any information requested under this Act;
(c) who has not been given a response to a request for information or access to information within the time limit specified under this Act;
(d) who has been required to pay an amount of fee which he or she considers unreasonable;
(e) who believes that he or she has been given incomplete, misleading or false information under this Act; and
(f) in respect of any other matter relating to requesting or obtaining access to records under this Act.
यह मौजूदा प्रकरण सीधे-सीधे इस धारा की उपधारा (1) के खंड (b) who has been refused access to any information requested under this Act तथा (e) who believes that he or she has been given incomplete, misleading or false information under this Act के अंतर्गत आता है क्योंकि सूचना धारक पुलिस महानिरिक्षक कार्मिक ने बिना वाजिब कारण बताए यह कह दिया कि यदि आवेदक चाहे तो वह सूचना शासन से ही प्राप्त करे. इन्होंने यह कत्तई नहीं बताया कि मेरे द्वारा वांछित सूचना इनके पास है अथवा नहीं. इन्होने यह भी नहीं अवगत कराया कि यदि वांछित सूचना उनके पास है तो वे यह सूचना क्यों नहीं देंगे, अर्थात सूचना इस अधिनियम की किस धारा में प्रतिबंधित या अच्छादित है. वैसे मुझे ऐसा प्रतीत होता है कि यह पत्र (सूचना) इनके पास भी अवश्य होगा अन्यथा वे किस आधार पर बार-बार अपने विभिन्न पत्रों में इसका उल्लेख करतीं पर यदि एक पल के लिए यह मान भी लिया जाए कि पत्र की प्रति उनके कार्यालय में उपलब्ध नहीं है और यदि इनको ऐसा प्रतीत हो रहा था कि यह सूचना शासन के गृह विभाग के पास होगी और यह अधिनियम के किसी प्रावधान में अच्छादित नहीं है तो उन्हें इस अधिनियम के प्रावधानों के अंतर्गत मेरे आवेदन पत्र को गृह विभाग के जन सूचना अधिकारी को अंतरित करना चाहिए था.
इस प्रकरण में सूचना धारक पुलिस महानिरिक्षक कार्मिक ने जन सूचना अधिकार में दर्शाये गए किसी भी विधिक कर्तव्य का अनुपालन नहीं किया, उन्होंने यह लिख दिया कि यदि आवेदक को यह पत्र चाहिए तो शासन से ही प्राप्त करे.
यह किसी भी प्रकार से वैध उत्तर नहीं हुआ और पूरी तरह से जन सूचना अधिकार अधिनियम का खुला उपहास हुआ. सूचना धारक का यह कहना कि शासन का वांछित पत्र मुझे ही संबोधित था और मेरे द्वारा पूर्व में प्राप्त किया गया था, किसी प्रकार से सूचना धारक पुलिस महानिरीक्षक कार्मिक को यह अधिकार नहीं देता कि वे मुझे इस पत्र की प्रति प्रदान करने से मना कर दें और मुझे यह कह दें कि यदि पत्र की प्रति लेना है तो “वे शासन से ही प्राप्त करें.”
जन सूचना अधिकार अधिनियम किसी भी पत्र की प्रति इस आधार पर देने से मना नहीं करता कि सूचना मांग रहे व्यक्ति को वह पूर्व में किसी अन्य सन्दर्भ में प्राप्त हुआ हो, संभव है सूचना मांग रहे व्यक्ति से वह खो गया हो अथवा उसे किसी प्रकार की शंका हो अथवा कोई भी अन्य कारण से वह पूर्व में प्राप्त किये गए पत्र की प्रति पुनः जन सूचना अधिकार अधिनियम में वांछित शुल्क प्रदान कर प्राप्त कर सकता है.
ऐसे में सूचना धारक पुलिस महानिरीक्षक कार्मिक का विना बताये कि सूचना उनके पास है अथवा नहीं, सूचना निषिद्ध अथवा प्रतिबंधित तो नहीं है या विना प्रार्थनापत्र संवंधित अधिकारी को अंतरित किये यह मनमाना आचरण कि उन्होंने अपनी मर्जी से यह घोषित कर दिया कि वे सूचना नहीं देंगी, यही प्रार्थी को सूचना चाहिए तो कहीं और से प्राप्त करें एक ऐसा दृष्टांत है जो इन अधिकारी महोदया का विधि के प्रति पूर्ण असम्मान और जन सूचना अधिकार अधिनियम की खुलेआम अवहेलना की भावना को स्पष्टतया जाहिर करता है.
अतः उनके द्वारा इस अधिनियम का खुला माखौल बनाया गया है और मैं तदनुसार आपसे निवेदन करता हूँ कि धारा
18 की उपधारा (2) Where the Central Information Commission or State Information Commission, as the case may be, is satisfied that there are reasonable grounds to inquire into the matter, it may initiate an inquiry in respect thereof  में प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए इसी धारा की उपधारा (3) तथा उपधारा (4) में वर्णित प्रक्रिया एवं शक्तियों के अनुसार सूचना धारक पुलिस महानिरीक्षक कार्मिक, पुलिस महानिदेशक कार्यालय, उत्तर प्रदेश के विरुद्ध जांच कर तदनुसार धारा 20. (1) के तहत अर्थ दंड दिये जाने की कृपा करें.
इसके साथ कृपया यह भी निवेदन है कि इसी अधिनियम की धारा
20 की उपधारा (2) के अंतर्गत यह प्रावधान है कि Where the Central Information Commission or the State Information Commission, as the case may be, at the time of deciding any complaint or appeal is of the opinion that the Central Public Information Officer or the State Public Information Officer, as the case may be,  has, without any reasonable cause and persistently, failed to receive an application for information or has not furnished information within the time specified under sub-section (1) of section 7 or malafidely denied the request for information or knowingly given incorrect, incomplete or misleading information or destroyed information which was the subject of the request or obstructed in any manner in furnishing the information, it shall recommend for disciplinary action against the Central Public Information Officer or the State Public Information Officer, as the case may be, under the service rules applicable to him.
मैं इस शिकायतपत्र के साथ तमाम ऐसे दृष्टांत प्रस्तुत कर रहा हूँ जो यह स्पष्ट कर देंगे की सूचना धारक पुलिस महानिरीक्षक कार्मिक द्वारा without any reasonable cause and persistently (बिना किसी पर्याप्त कारण के और अनवरत) या तो समय से सूचना नहीं दी जा रही है अथवा जानबूझ कर गलत सूचना दी जा रही है या कोई भी सूचना दिये जाने से मना किया जा रहा है.
सवसे पहले तो हाल में ही मेरे एक प्रकरण शिकायत संख्या एस1/4512/सी/2012 में दिनांक 02/04/2013 सहित कई अवसरों पर बार-बार अवसर देने के बाद भी जन सूचना अधिकार अधिनियम के प्रावधानों का उल्लंघन करने के सन्दर्भ में स्वयं मा० आयुक्त महोदय द्वारा अपने आदेश 28/05/2013 द्वारा अधिनियम की धारा 20(1) के अंतर्गत सूचना धारक पुलिस महानिरीक्षक कार्मिक पर रुपये 25,000 के अर्थ दंड से दण्डित किया गया है.
मेरे एक पत्र संख्या
AT/RTI-Promo/DG/01 दिनांक 20/07/2012 में वांछित सूचना के सम्बन्ध में इन्ही सूचना धारक ने अपने पत्र दिनांक 21/08/2012 द्वारा यह कह दिया कि “वांछित सूचना प्रदान करने के लिए शासन ही समक्ष है” जबकि उनका कर्तव्य इस प्रार्थनापत्र को अंतरित किया जाना था. मेरे पत्र संख्या AT/RTI-DPC/DG/01  दिनांक 21/05/2012 में इन सूचना धारक ने अपने पत्र दिनांक 09/07/2012 द्वारा कहा कि यदि आवेदक यह सूचना चाहते हैं तो शासन के गृह विभाग से सूचना प्राप्त कर सकते हैं, जबकि पुनः इस पत्र को अंतरित किया जाना चाहिए था. इसके अतिरिक्त चार अन्य प्रकरणों पत्र में भी सूचना धारक पुलिस महानिरीक्षक कार्मिक ने इसी प्रकार की सूचना दी जिस पर मैंने प्रथम अपीलीय अधिकारी के समक्ष अपना प्रतिरोध अपने पत्र संख्या AT/RTI-Promo/DG/01 दिनांक 27/08/2012 द्वारा किया. इसके बाद इन पत्रों में से कई पत्र शासन को वास्तव में अंतरित भी किए गए.
इससे पूर्व मुझसे सम्बंधित शिकायत संख्या एस1/1414/सी/2012 में स्वयं मा० मुख्य सूचना आयुक्त महोदय ने इन्ही सूचना धारक को अपने आदेश दिनांक 04/09/2012 द्वारा अधिनियम की धारा 5(4) के अंतर्गत नोटिस जारी किया और दिनांक  06/11/2012 के अपने आदेश में निर्देशित भी किया कि किसी भी दशा में गलत सूचना नहीं दी जाए और एक ही बार में सूचनाएँ दी जाएँ. इसी प्रकार शिकायत संख्या एस1/2484//सी/2012 में स्वयं मा० मुख्य सूचना आयुक्त महोदय ने इन्ही सूचना धारक को अपने आदेश दिनांक 27/11/2012 द्वारा अधिनियम की धारा 5(4) के अंतर्गत नोटिस जारी किया.
मेरे पत्र संख्या AT/RTI-RM/DG/10 दिनांक 09/07/2012 के सम्बन्ध में इन अधिकारी महोदया ने अपने पत्र दिनांक 21/08/2012 द्वारा बिना कोई कारण या आधार बताए अपनी मर्जी से यह कह दिया कि “नोटशीट की छायाप्रति देने का औचित्य नहीं पाया गया.” यही उत्तर उन्होंने पुनः मेरे पत्र संख्या AT/RTI-RM/DG/8 दिनांक 09/07/2012 के सम्बन्ध में अपने पत्र दिनांक 22/08/2012 द्वारा दिया.
मैंने अपने पत्र संख्या AT/RTI-RM/DG/12 दिनांक-17/12/2012 के माध्यम से दो नोटशीट के पृष्ठों (पृष्ठ 1 तथा 16)  की प्रतियां प्रेषित करते हुए इस सम्बन्ध में कतिपय सूचना दिये जाने का निवेदन किया था. इस सम्बन्ध में पुनः पुलिस महानिरीक्षक (कार्मिक), उ०प्र० द्वारा अपने पत्र संख्या- डीजी-1-57(9)2013 दिनांक 02/04/2013 के माध्यम से कह दिया गया कि “श्री अमिताभ ठाकुर, आईपीएस को नोटशीट के पृष्ठ 1 तथा 16 की उपलब्ध कराई गयी छायाप्रति के अतिरिक्त शेष नोटशीट इनके प्रकरण से सम्बंधित नहीं है.”  पुलिस महानिरीक्षक (कार्मिक) का उक्त उत्तर भी प्रथमद्रष्टया ही जन सूचना अधिकार अधिनियम के प्रावधानों के पूर्णतया विपरीत और उनके स्पष्ट उल्लंघन में है क्योंकि धारा 8 तथा धारा 11  में कहीं भी यह प्रावधान नहीं दिखता है जहाँ कोई सूचना इस आधार पर दिये जाने से मना किया जाए कि वह सूचना मांगने वाले व्यक्ति के प्रकरण से सम्बंधित नहीं है. मेरे पत्र संख्या AT/RTI-APR/DGP दिनांक 28/03/2013 के सम्बन्ध में सूचना धारक पुलिस महानिरीक्षक (कार्मिक), उ०प्र० में अपने पत्र दिनांक 04/04/2013 द्वारा सभी चारों बिंदुओं पर गलत सूचना दी.
उपरोक्त सभी दृष्टांत, जिनकी संख्या दर्जनों में है, इस बात की स्पष्ट पुष्टि करते हैं कि सूचना धारक पुलिस महानिरीक्षक (कार्मिक), उ०प्र० इस प्रकार सूचना का अधिकार अधिनियम के प्रावधानों का खुलेआम उल्लंघन करने की आदी हैं और उनका विधि द्वारा स्थापित व्यवस्था और भारत के संसद द्वारा पारित देश के इस क़ानून पर शुन्यमात्र भी विश्वास नहीं है.
यदि इन दृष्टान्तों के साथ वे सभी दृष्टान्त भी जोड़ दिये जाएँ जिनमे उनके द्वारा बिर्धरित समयावधि में मुझे सूचना नहीं प्रदान की गयी तो इसकी संख्या पचास तक पहुँच सकती है. इनमे लगभग सभी मामलों में मा० मुख्य सूचना आयुक्त महोदय के आदेशों पर मुझे सूचना प्राप्त हुई लेकिन सूचना धारक महोदया ने अपने स्तर से हर संभव प्रयास किया कि इन प्रकरणों में सूचना नहीं दी जाए. मा० आयोग इस प्रकरण में सुनवाई के दौरान तत्काल अपने कार्यालय को आदेशित कर ऐसे सभी प्रकरणों को अपने समक्ष मंगवा सकते हैं, जिससे मेरी बात साबित हो जायेगी.
यहाँ कृपया यह व्ही ज्ञातव्य हो कि मैंने जन सूचना अधिकारी, पुलिस महानिदेशक कार्यालय के स्थान पर पुलिस महानिरीक्षक (कार्मिक), उ०प्र० को प्रतिवादी बनाया है और उनकी शिकायत कर रहा हूँ क्योंकि मेरे इन सभी प्रकरणों में वे ही सूचना धारक रही हैं. फिर चूँकि वह जन सूचना अधिकारी अपर पुलिस अधीक्षक स्तर के अधिकारी हैं और कार्यालय के प्रथम अपीलीय अधिकारी पुलिस उपमहानिरीक्षक स्तर के, अतः पुलिस विभाग में कनिष्ठ अधिकारी होने के नाते वे वरिष्ठ पदधारक सूचना धारक के समक्ष निश्चित रूप से असहाय होंगे और तदनुसार इस प्रकार अधिनियम की अनवरत अवहेलना के लिए प्रथमद्रष्टया उत्तरदायी नहीं माने जाने चाहिए. कृपया यह भी ज्ञातव्य हो कि यह प्रार्थनापत्र सूचना अधिकार अधिनियम के अंतर्गत धारा
19 में दिये गए प्रावधानों के अधीन द्वितीय अपील नहीं है क्योंकि अभी इस प्रकरण में प्रथम अपील भी नहीं हुई है और मैं पुलिस महानिदेशक कार्यालय के प्रथम अपीलीय अधिकारी से अलग से धारा 19 में दिये गए प्रावधानों के अधीन प्रथम अपील कर रहा हूँ. यह प्रार्थनापत्र पूरी तरह से धारा 18 के अंतर्गत शिकायती पत्र है और कृपया इसे उसी रूप में माना जाए.
अंततोगत्वा यही निवेदन है कि यदि इस प्रकार एक अधिकारी द्वारा इस प्रकार स्पष्टतया अनवरत विधि के प्रावधानों का उल्लंघन होता रहे और मा० आयोग द्वारा इस सम्बन्ध में आवश्यक विधिक कार्यवाही नहीं की गयी तो यह निश्चित रूप से कष्टप्रद होगा और मा० आयोग की गरिमा और प्रतिष्ठा तथा विधि के अनुपालन के उसके दायित्वों पर भी दुष्प्रभाव पड़ेगा. अतः कृपया इस प्रकरण को प्राथमिकता देते हुए इस शिकायती पत्र पर जन सूचना अधिकार के अंतर्गत तत्काल कार्यवाही करने का विनम्र निवेदन करता हूँ. 

                                                            भवदीय,

पत्र संख्या-
AT/RTI-APR/DGP/07                                   (अमिताभ ठाकुर)
दिनांक-
10/06/2013                                              5/426, विराम खंड,
                                                         
 गोमती नगर, लखनऊ
                                                                                                                                               
      # 94155-34526


1 comment:

  1. In This Act it is Very Clear that:Any citizen, including overseas citizens of India and persons of Indian origin, can ask for information under this law. This right includes inspection of work,documents and records, taking notes, extracts or
    certified copies of documents or records, and taking certified samples of material held by the public authority or under its control.

    ReplyDelete