Saturday, June 1, 2013

एक पूरी तरह झूठी कहानी



मैं अपनी बात की शुरुआत में यह कह दूँ कि यह जो प्रकरण मैं प्रस्तुत कर रहा हूँ वह मेरी दृष्टि से पूर्णतया काल्पनिक है और इसके सभी पात्र भी काल्पनिक हैं. यह भी कह दूँ कि मुझे नहीं लगता कि ऐसा विधिविरुद्ध कार्य कहीं होता भी होगा. और मुझसे तो इस कहानी का दूर-दूर तक कोई वास्ता ही नहीं है.

यह प्रकरण लगातार मेरे सपने में आता रहा और इसने मुझे सपने में कदर बेचैन कर दिया कि मैं इसे लिपिबद्ध करूँ और अंत में आजिज आ कर मैं मात्र अपनी जान बचाने को इस कपोलकल्पित प्रकरण को लिख रहा हूँ.

एक आदमी था. वह अफसर भी था. अजीब इत्तेफाक कि वह पुलिस का ही अफसर था. वह कुछ झक्की और मनमौजी किस्म का था. बहुत दबता नहीं था. इस कारण अकसर उसकी किसी ना किसी सीनियर से ठन ही जाया करती थी. वह कहीं तैनात था. वहाँ भी कुछ ऐसा ही हुआ. सीनियर उससे खार खाने लगा. उस अफसर की बदकिस्मती कि उसी समय उसके ठीक नीचे वाले अफसर से भी उसका खटपट हो गया. और भी बदकिस्मती कि उसके सीनियर और जूनियर अफसर आपस में अच्छे दोस्त थे.

सीनियर को एक प्रकरण में जांच करने को कहा गया. उसने तुरंत उस जूनियर अफसर को साथ मिला कर उस अफसर को गलत तरीके से एक मुकदमे में फॅसाने के लिए एक बहुत मोटी रिपोर्ट बनवाई और उस अफसर के निर्दोष होने के बाद भी कह दिया कि वह अफसर खतरनाक किस्म के बेहद गडबड काम करता है.

खबर बड़ी टटका थी और रिपोर्ट काफी मोटी. स्वाभाविक रूप से तमाम अखबारवालों ने उसे सही मान लिया और उस अफसर को कटघरे में खड़ी करती कई खबरें कई समाचार पत्रों में छपीं.

जब कई जगहों पर यह खबर छपी तो सरकार भी जागी. मामले की जांच सरकार के एक बड़े अधिकारी को सौंपी गयी. सांच को आंच नहीं की तर्ज पर जांच करने वाले अफसर ने दूध का दूध पानी का पानी कर दिया और बता दिया कि वह अफसर कहीं से दोषी नहीं था.

जिस अफसर को फर्जी फंसाने की कोशिश की गयी थी वह भी अपने आप में जिद्दी था. उसकी जिद थी कि उसका निर्दोष साबित होना अपने आप में काफी नहीं, वे सभी सीनियर और जूनियर अफसर भी दण्डित होने चाहिए जिन्होंने उसे फर्जी फंसाना चाहा.

वह अपने अभियान में कई सालों से जुड़ा है पर कोई उसकी बात नहीं सुन रहा. सभी यही कहते हैं कि जान बची लाखों पाए, अब उसे भूलों और आगे की सुधि लो. वह अफसर कहता है वह तो सबों की जिम्मेदारी तय करा कर मानेगा.

यह सब चलता ही रहा कि उस अफसर ने तय किया कि वह अपनी बात लोगों तक ले जाएगा. उसके देखा तो पाया कि उसकी नौकरी में अपने मालिक से परमिशन ले कर लोगों तक अपनी बात कहने का हक है. नियम यह कि यदि अफसर एक आवेदन दे कर अपनी बात कहने की परमिशन मांगी और एक निश्चित समय सीमा के अंदर मालिक की तरफ से कोई जवाब नहीं मिला तो यह खुदबखुद मान लिया जाएगा कि मालिक का परमिशन मिल गया.

अफसर ने मालिक से परमिशन मांगी. मालिक की तरफ से कोई जवाब नहीं मिला. निर्धारित समय बीत गया. अफसर ने समझा कि अब नियम से उसे अपनी बात कहने का अधिकार हो गया. उसने प्रेस के लोगों को बुलाया.

लेकिन उसके मालिकों को लगा कि अरे यह क्या? यह तो कुछ बोलने जा रहा है. आनन फानन में आपस में बात करके उसे यह हुकुम पकड़ा दिया कि तुम अपनी बात नहीं कह सकते. ना कारण बताया ना कुछ और. बस हुकुम थमा दिया.

वह दिन है और आज का दिन है. अफसर लिख-लिख कर हलकान है कि भैया, अव तो स्थिति साफ करों. बार-बार यह कह रहा है कि जब निर्धारित समय बीत गया तो मालिक को भी रोकने का कोई हक नहीं था. यह उसे अपनी बात कहने से गलत रोका गया है. यह भी चिल्ला रहा है कि देश का संविधान फलां बात कहता है. बोलने की आजादी देता है. संविधान के अनुच्छेद गिना रहा है. पर मालिक तो शायद संविधान से बहुत ऊपर होता है.

मालिक आराम से चुपचाप बैठा है. वह जानता है कि वही क़ानून है. वह यह भी जानता है कि सामने जो है वह नौकर है. और नौकरों की औकात ही कितनी होती है. मालिक ने जो कर दिया सो कर दिया- सही या गलत, विधिक या अवैध, संवैधानिक या असंवैधानिक- यदि बोलने से रोक दिया तो रोक दिया.

समस्या एक ही है कि अफसर भी बहुत पाजी है. वह भी बात नहीं मानता. रह-रह क़ानून की भाषा बोलता है. यह जान कर भी कि उसे नुकसान हो सकता है, वह चुप नहीं रह पाता. यह जान कर भी कि मालिक नाराज हो जायेंगे, वह उचकता रहता है.

यह रस्साकशी बस चली ही आ रही है. देखने से तो यही लगता है कि जब नियम कहता है कि समय बीतने पर अफसर को अपनी बात कहने का खुद ही हक मिल जाता है तो उस निर्धारित समय के बाद उसे रोका नहीं जाना चाहिए था. पर मालिल तो मालिक ही है, उसका तो यही कहना है कि वही क़ानून है. वह ना तो अफसर को कुछ बता रहा है और ना ही उसके मुहं पर बाँधी पट्टी खोल रहा है. आराम से हमेशा की तरह निश्चिन्त भाव से लेटा है.

अब देखना यही है कि सच और ताकत की यह लड़ाई, जो मुझे मेरे सपनों में बार-बार नज़र आती है और मुझे परशन किये हुए है, कब अपने किसी निश्चित मुकाम तक पहुँच पाएगी और मुझे ठीक से नींद आ सकेगी.

अमिताभ ठाकुर

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