Sunday, June 2, 2013

क्रिकेट कैंसर (कविता)



बहुत कुछ बेकार देखा आस-पास,
है मगर क्रिकेट इन सब का बाप,
खेल है ये जहाँ तक ठीक है,
उसके आगे जो भी है जी का जंजाल.

खेलते है लोग स्वस्थ रहने को यहाँ,
खेलते कुछ लोग मनोरंजन को भी हैं,
खेलने का तो बहाना जो भी हो,
दिक्कत है आती जब बनता बवाल.

टीम इंडिया हो या ट्वेंटी-ट्वेंटी,
कोफ़्त होती देख देश का हाल,
सब बने बेचैन ऐसे घुमते,
जीतते सुधरेगी गरीब देश की चाल.

क्यों नहीं समझते ये पागल बावले,
धूर्त उनको लूटते आंकड़ों में डाल,
कौन कितने सेंचुरी है मारता,
इससे क्या बदलेगी सूरत तेरी यार.

हम गरीबों का यहाँ ये देश है,
ये अमीरों के ना लें हम चोंचले,
अम्बानी, शाहरुख, प्रीटी ठीक हैं,
हम क्यों फंसाएं अपने को उसमे बेकार.

मैच होते देश जाता बौखला,
पता नहीं फूटेंगे क्या लड्डू कमाल,
बंद दफ्तर, खाली कुर्सी, सब बंद,
रन और ओवर पेट पालेंगे ये क्या?

ये क्रिकेट है देश का वह कैंसर,
चाहिए जिसको पूरा सेंसर,
ना दिखे टीवी पर ये ना रेडियो,
खेलना जिसको जहाँ है खेल लो.

अब समय आ गया समझें ये लोग,
देश की बर्बादी में इसका भी है हाथ,
क्रिकेट में तो लोग करोड़ों बना गए,
लूट रहा है आम आदमी पूरी तरह.



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