Saturday, June 22, 2013

अजातशत्रु बन गया पंगेबाज



मैं किसी समय एसपी देवरिया के पद पर तैनात था. वहाँ एक सज्जन जो रोज मेरे पास उठते-बैठते थे और जिनके बारे में उनके विरोधी मुझे कहते कि उनके साथ मेरी कथित नजदीकियों से मेरी बदनामी हो रही है क्योंकि संभवतः उनकी छवि एक दलाल की थी पर मैं ये बातें नहीं मानता क्योंकि मेरा उनसे सिवाय मित्रता के कोई अन्य सम्बन्ध नहीं था, ने एक बार मुझे मेरी तारीफ़ करते हुए कहा था आप तो अजातशत्रु हैं.

उनका मतलब यह था कि कोई भी व्यक्ति (खास कर राजनैतिक व्यक्ति) मेरा विरोध नहीं करता भले वह उस राजनैतिक दल का नहीं हो जिसके द्वारा सरकार बनायी गयी हो.

इसका कारण भी था. उस समय, यानि अपनी नौकरी के शुरुवाती दिनों में, मेरी आधारभूत सोच यह थी कि एक अफसर और एक व्यक्ति के रूप मुझे सबों से समान व्यवहार तो करना ही चाहिए, साथ ही यह भी प्रयास करना चाहिए कि उन्हें मेरे किसी कार्य अथवा शब्द से कोई कष्ट नहीं पहुँच जाए.

मुझे आज यह स्वीकार करने में कोई संकोच नहीं कि मेरी इस प्रवृत्ति के पीछे सबों के प्रति समान आचरण के अलावा स्वरक्षा की भावना भी होती थी कि कहीं कोई नाराज़ नहीं हो जाए.

इसके विपरीत आज जब खुद को किसी बिगडैल सांड की तरह कई जगहों पर पंजेबाजी  में लगा हुआ देखता हूँ, तो सचमुच खुद पर अच्छा लगता हैं और देवरिया के उस "अजातशत्रु" के प्रति कुछ दया की भावना ही उभरती है.

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