Tuesday, May 28, 2013

हम क़ानून में विश्वास करना सीखें



हम क़ानून में विश्वास करना सीखें

यह देख कर वास्तब में कई बार बहुत दुःख होता है कि हमारे कई सारे वरिष्ठ अधिकारी भी क़ानून और न्यायालयों को कुछ समझने से बहुधा इनकार करते दिखते हैं और इस प्रक्रिया में वे कई बार न्यायालयों तथा अर्ध-न्यायिक संस्थाओं द्वारा दण्डित भी होते रहते हैं. अभी पिछले दिनों उत्तर प्रदेश में एक बहुत भारी संख्या में वरिष्ठ अधिकारियों को कथित रूप से मा० हाई कोर्ट की अवमानना के आरोपों में दण्डित होने के दृष्टांत बहुत दूर नहीं हैं.

आज मैंने अपनी आखों के सामने एक ऐसा ही दृष्टांत देखा जब मुख्य सूचना आयुक्त, उत्तर प्रदेश श्री  रणजीत सिंह पंकज ने उत्तर प्रदेश के आईजी कार्मिक पर 25,000 हज़ार रूपए का अर्थ दंड लगाया. श्री पंकज ने यह आदेश कथित रूप से बार-बार आदेशों के बाद भी मुझे सूचना नहीं दिये जाने के आरोप में यह दंड लगाया.

दरअसल मैंने अपनी ही लिखी अपने काव्य संकलन आत्मादर्शके सम्बन्ध में डीजीपी  कार्यालय से कुछ सूचनाएँ मांगी थी. मामले में जानकारी नहीं दिये जाने पर जन सूचना अधिकारी से प्रथम अपीलीय अधिकारी और वहाँ से मुख्य सूचना आयुक्त तक प्रकरण गया. जब वहाँ भी सूचना नहीं मिल रही थी तो पीछ;ली सुनवाई के दिन मुख्य सूचना आयुक्त ने कुछ कठोर निर्देश पारित किये.  

आज सुनवाई के दौरान जब मुख्य सूचना आयुक्त ने देखा कि वांछित सूचना नहीं मिली है और उसकी जगह सूचना नहीं दिये जाने के कुछ ऐसे कारण बताए गए हैं जो उनकी दृष्टि में सही नहीं थे तो उन्होंने यह अर्थ दंड लगाने के आदेश दिये.

यह बात वास्तव में अजीव और कष्टप्रद लगती हैं कि हम वरिष्ठ अधिकारी भी कई बार सीधे-सीधे क़ानून का उल्लंघन करते दिखते हैं जबकि हमारा स्वयं का दायित्व ही क़ानून की रखवाली करना और क़ानून का पालन करवाना है. कई बार यह भी दिखता है कि बहुत सारे वरिष्ठ अधिकारी आरटीआई एक्ट की जानकारी नहीं रखते और उसके आम जनता के लिए लाभ को नहीं समझना चाहते.  आरटीआई एक्ट एक बहुत ही सरल एक्ट है जो सरकार और प्रशासन को आम जनता के लिए खोलता है और हमें इसके  प्रभाव को देखते हुए इसका सम्मान करना चाहिए. हमें इसे पूरी तरह समझ कर इसका सही उपयोग होने में आम जन की मदद करनी चाहिए जिससे यह एक्ट अपनी पूर्णता में जनता के काम आ सके
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जिस भी क्षण प्रत्येक सरकारी सेवक इस एक्ट को पूरी तरह समझ जायेंगे और यह बात भी दिमाग में पूरी तरह डाल लेंगे कि वे क़ानून नहीं हैं बल्कि क़ानून का पालन कराने के लिए सरकार की ओर से बैठाए गए उसके नुमाइंदे हैं, उसी क्षण हमारी बहुत सी समस्याएं समाप्त हो जायेंगी और देश की भी. इससे आम आदमी को भी बहुत अधिक राहत मिलेगा. 

लेकिन असल प्रश्न यही है कि क्या हम ऐसा करने को तैयार हैं या हम क़ानून को तोड़ने और इसका उल्लंघन करने में ही अपनी शान समझते हैं?

अमिताभ ठाकुर

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