Sunday, December 29, 2013

श्री अरविन्द केजरीवाल को पत्र



आज मैंने श्री अरविन्द केजरीवाल को एक पत्र भेजा है जिसकी प्रति संलग्न कर रहा हूँ. पत्र में मुख्य रूप से यह निवेदन किया गया है कि चूँकि श्री केजरीवाल एक व्यापक सामाजिक बदलाव की बात करते हैं, अतः उन्हें कुछ बिन्दुओं पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है. एक तो उन्हें समाज के प्रत्येक क्षेत्र से जुडी जटिल और क्लिष्ट समस्याओं के लिए सरलीकृत समाधानों से बचना होगा. दुसरे मात्र प्रतीकात्मकता से ऊपर हट कर अपने लक्ष्य और उद्देश्य की ओर इंगित होना चाहिए क्योंकि संकेकिकता “एक नयी-नयी बातें एक नयी-नवेली दुल्हन की तरह पलक झपकते अपना आकर्षण खो बैठती हैं” और आगे शाश्वत और गंभीर कार्य ही काम आता है. तीसरे व्यवस्था में लोगों को तत्काल ईमानदार और बेईमान करार देने से बेहतर हो कि सभी लोगों से मिल कर अपने अनुरूप काम लिया जाए. चौथा निवेदन अपने सामाजिक परिवर्तन के ध्वजवाहकों को अवांछनीय श्रेष्ठता और दूसरे लोगों के विचारों के प्रति अनादर भाव से बचने को प्रोत्साहित करने का है. मैंने यह पत्र श्री केजरीवाल द्वारा सामाजिक सारोकारों के प्रति बताये जा रहे समर्पण के दृष्टिगत अपनी व्यक्तिगत हैसियत में प्रेषित किया है.


आदरणीय श्री अरविन्द केजरीवाल,
सामाजिक कार्यकर्ता, चिन्तक एवं विचारक,
वर्तमान में मुख्यमंत्री,
दिल्ली,
नयी दिल्ली
महोदय,
      मैं अपनी बात कहने के पहले सूक्ष्म में अपना परिचय देना चाहूँगा. मेरा नाम अमिताभ ठाकुर है. मैं पेशे से एक आईपीएस अधिकारी हूँ और सामाजिक सारोकार नाम के जंतु से मैं भी प्रभावित हूँ, यद्यपि इस दिशा में अभी तक बातें बनाने और सपने देखने के अलावा शायद कुछ और नहीं कर पाया हूँ.
यद्यपि आप मुझसे व्यक्तिगत स्तर पर अपरिचित नहीं हैं पर कोई इतना नजदीकी सम्बन्ध भी नहीं है और ना मेरी यह सामाजिक हैसियत है कि आपको यह ज्ञात हो कि मैं जन लोकपाल आन्दोलन के समय से आपका एक मुखर आलोचक रहा हूँ. यहाँ दो बातें देखने योग्य हैं- एक तो यह कि मैं भी अपने आप को बुद्धिमान व्यक्ति समझता हूँ और हर ऐरी-गैरी बात या साधारण व्यक्तित्व की ओर मेरा ध्यान नहीं जाया करता. अतः यदि पिछले तीन साल से आपकी लगातार आलोचना कर रहा हूँ तो इससे यह स्पष्ट है कि मेरी निगाहों में आप निश्चित रूप से अति-विशिष्ट रहे होंगे. यह सच्चाई है कि अपनी मेधा-बुद्धि और लगन से आप एक बहुत लम्बे समय से पढ़े-लिखे भारतीयों के बीच अपना एक ख़ास स्थान बनाए हुए थे और जिस दिन से आपने जन लोकपाल आन्दोलन को जन्म दिया उस दिन से तो आप पढ़े-लिखों से आम जन में भी निरंतर समाते ही चले गए. आपकी उपलब्धियां अद्भुत हैं, वे आज राष्ट्रीय ही नहीं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सराही जा रही हैं और आपके नाम आज इतने सारे रिकॉर्ड हैं कि वे सहज मानवीय अनुभूतियों से परे होते दिख रहे हैं क्योंकि अब तक जो बुद्धिजीवी और सोशल एक्टिविस्ट सिर्फ सोचते और विचरते रह जाते थे उसे आपने जमीन पर मूर्त स्वरुप प्रदान कर दिया है, और इस रूप में आप क्रांतिधर्मा और सामाजिक कार्यकर्ता पहले हैं, राजनैतिक व्यक्ति बहुत बाद में.  
दूसरी बात यह भी कि मेरी आलोचना में व्यक्तिगत राग-द्वेष का भी निश्चित रूप से स्थान होगा क्योंकि स्वतः-सृजित भ्राता-स्पर्धा की भावना- आईआईटी का एक ही बैच और ब्रांच का इंजिनीयर, एक सी सिविल सेवा में होने पर भी एक के समाज से जुड़ने की उत्कट इच्छा के बावूद आज तक अपनी सेवा से ही उलझ रहने और दूसरे के देखते-देखते एक महानायक बन जाने पर ईर्ष्या का होना स्वाभाविक है और मैं इसके लिए क्षमायाची नहीं हूँ क्योंकि जो नैसर्गिक है उसके प्रति अफ़सोस कैसा.
लेकिन इन व्यक्तिगत कारणों से इतर भी कुछ महत्वपूर्ण कारण हैं जिन्होंने मुझे आपकी आलोचना को मजबूर किया है और यह पत्र उन तथ्यों को ही उद्धृत करने के लिए है. पहली बात यह कि आप सफल हैं और दीवार के अमिताभ बच्चन, जिनके पास गाड़ी, बंगला, नाम तो था पर माँ नहीं, के विपरीत आज आपके पास एक साथ ताकत, शोहरत और इज्जत सभी कुछ है. आप यह भी कहते हैं कि आपके पास विचारों का खजाना है जो आपकी पुस्तक “स्वराज” में दर्ज है. मैं इसी जगह पर आपसे विनयपूर्वक निवेदन करना चाहता हूँ कि बहुत कोशिशों के बाद भी मुझे अभी आप के विचारों और सोच में एक स्पष्ट सतहीपना और उथलापण दिखता है, जो शासन और प्रशासन से जुड़े कई क्षेत्र में साफ़ दिख जाता है. आप सफल हैं, लोकप्रिय हैं, एक फैशन और क्रेज भी हैं. इस रूप में आपको मेरी बात शायद तीखी लग जाए पर सच्चाई यही है कि आपके प्रत्येक समाधान में एक अवांछनीय हड़बड़ी, तेजी और आसान रास्ते के प्रति ललक दिखाई देती है. आपने जन लोकपाल का विचार लाया और कुछ कानूनी बातों के आधार पर घोषित कर दिया कि यही पुस्तक देश के भ्रष्टाचार को हटाने की बाइबल बनेगी, इसी पुस्तक में देश की सब दिक्कतों को दूर करने का समाधान छिपा है. शायद आपको याद हो, उस समय जन लोकपाल को आपने “जादू की छड़ी” कहा था, वही “जादू की छड़ी” जिसके होने से आप आज इनकार करते दिखते हैं. आपने एक बार भी नहीं सोचा कि क्या व्यवहारिक रूप में एक क़ानून देश के समस्त भ्रष्टाचार को दूर कर सकता है? इस अत्यंत संश्लिष्ट बीमारी का अत्यंत सरल समाधान आपने ना सिर्फ प्रस्तुत किया, अपनी कुशाग्रता और बेहतरीन प्रबंधन-कला से दुनिया से भी उसे मनवा लिया.
उसके बाद आपने “स्वराज” लाया है जिसमे प्रत्येक विषय पर समाधान दिया है. मैंने उस पुस्तक को पढ़ी और बुरा नहीं मानें, वह भी जन लोकपाल की तरह जादू का एक बड़ा पिटारा ही दिखती है जिसमे तमाम जादू की छड़ियाँ यहाँ-वहां बिखरी पड़ी हैं. यह कर दो, यह हो जाएगा, वह कर दो वह हो जाएगा. इसका यह समाधान है, उसका वह समाधान है. अर्थात यह कि प्रत्येक बात का समाधान है. आप इंजीनियर भी तो हैं, प्रबंधक भी. अतः आपने स्वतः यह मान लिया कि समस्या है तो समाधान भी अवश्य ही होगा और आइन्स्टीन की प्रणाली को अपनाते हुए आपने यह भी मान लिया कि यह समाधान निश्चित रूप से सरल और आसन होगा. सादर निवेदन करूँगा कि यह एक ऐसी भारी भूल है जिसके प्रति आपको गहरे पुनार्विचारण की आवश्यकता है. कृपया यह समझें कि सामाजिक विज्ञान में, सामाजिक जीवन में विज्ञानं की तरह सरल और स्पष्ट उत्तर और समाधान नहीं होते. इसमें संश्लिष्टता होती है, दुरूहपन होता है और पेचीदगियां भी. यह सही है कि आप अपनी विशिष्ट और तीक्ष्ण बुद्धि से कई सारे दुरूहपन को दूर भी कर देते हैं और आपने वे रास्ते निकाले हैं जो दूसरों ने कल्पना भी नहीं की थी, पर एक बात मेरी भी मान लें कि समाजशास्त्र और अर्थशास्त्र उतने आसान विषय नहीं हैं जितना आप उसे समझ रहे हैं. आप अभी तक सपने जगा रहे थे, लोगों को भविष्य में खेला रहे थे. आपने यह कार्य बहुत सफलतापूर्वक किया. अब आप स्वपनलोक में नहीं, वास्तविक धरातल पर लोगों से रूबरू होंगे. एक्टिविस्ट अरविन्द कुछ दिन ही चल सकेंगे, कार्यपालक अरविन्द को सामने आना ही पड़ेगा. और कार्यपालक अरविन्द को यह समझना होगा कि उसे अपने-आप को सर्व-ज्ञाता समझने की जगह स्वयं को एक जिज्ञासु बालक के रूप में रखना अधिक अच्छा रहेगा, देश-समाज के लिए और स्वयं आपके लिए. अतः जनसभा में हाथ उठवा कर ईमानदारी की शपथ लेने का सांकेतिक महत्व तो ठीक है, पर कार्यपालक अरविन्द को यह समझना होगा कि इसका उपयोग सांकेतिकता से अधिक कुछ नहीं है.
इसके आगे इन विषयों पर मैं आपको कुछ नहीं बता पाऊंगा क्योंकि मैं तो स्वयं ही सीखने और जानने की प्रक्रिया में हूँ. मुझे तो अचरज होता है यह देख कर कि आप कितना कुछ जान और समझ चुके हैं देश और समाज के बारे में, मुझसे बहुत-बहुत ज्यादा. हाँ, एक बात मैं जानता हूँ कि मैं ज्यादा नहीं जानता और यह भी चाहता हूँ कि आप जैसा ज्ञानी व्यक्ति को यह मान कर नए सिरे से चीज़ों को जानने और समझने की कोशिश करे तो शायद अच्छे समाधान निकलेंगे और जिन उद्देश्यों से आप चले हैं उनकी पूर्ती होगी और यह आपकी वास्तविक ऐतिहासिक भेंट होगी.
दूसरी बात यह कि अब आप जब जिम्मेदारी के स्थान पर आ गए हैं तो कृपया उतनी सरलता और तत्परता से ईमानदारी और बेईमानी का सर्टिफिकेट नहीं बांटे. जहां तक मैं समझ पाया हूँ व्यक्ति एकदम ईमानदार और बेईमान कम होते हैं, हममे से ज्यादातर बीच की स्थितियों में रहते हैं. यह भी होता है कि जब चालाक लोगों को यह मालूम हो जाता है कि व्यवस्था में ईमानदारी का सर्टिफिकेट बंटने लगा है तो वे बड़ी चालाकी से यह सर्टिफिकेट हासिल करने के नए-नए जुगत लगा लेते हैं और जब तक मालूम भी नहीं होता, वे अपना काम बना चुके होते हैं. अतः निवेदन करूँगा कि धैर्यपूर्वक लोगों को समझें और जानें, उन्हें अपने अनुकूल बनाने का प्रयास करें और सबों से एक समूह के रूप में अधिकतम जनहितकारी कार्य लेने की कोशिश करें, बनिस्पत कि यह सर्टिफिकेट बांटने में लगें. यदि यह कार्य समाज के अन्य क्षेत्र के लोगों के प्रति भी कर सके तो बहुत उत्तम क्योंकि अब आप उस स्थान पर बैठे हैं जहां मात्र एक प्रकार के लोग नहीं, भाँती-भाँती के लोग आपके सामने आयेंगे.
तीसरा निवेदन यह है कि कृपया अब अधिक सांकेतिकता से भी बचें- मेट्रो में यात्रा, बिना सुरक्षा घेरे के चलना, आम सवारी से आना-जाना, आम आवास में रहना, इसके विपरीत बहुत भव्य शपथ ग्रहण करना आदि. आपने अब समाज को राजनीती के जरिये अपना योगदान देना निश्चित किया है, अतः उसके कुछ बुनियादी सिद्धांतों और जरूरी जरूरतों को सहर्ष स्वीकारते हुए अपने लक्ष्य और उद्देश्य को मूल मुद्दा बनाएं, यह नयी-नयी बातें एक नयी-नवेली दुल्हन की तरह पलक झपकते अपना आकर्षण खो बैठती हैं और कुछ दिनों बाद तो शास्वत और गंभीर कार्य ही काम आता है.
चौथी और अंतिम बात यह कि एक जिम्मेदार सामाजिक व्यक्ति का यह भी दायित्व है कि वह समाज में समरसता लाये. मुझे कई बार यह आभास होता है कि आपके सामाजिक परिवर्तन के साथी और वाहक संभवतः आपके प्रति सम्पूर्ण प्रतिबद्धता और समर्पण की भावना के कारण अतिरेकपूर्ण और अनुचित आचरण करने लगते हैं. चूँकि उनमे ज्यादातर पढ़े-लिखे लोग हैं जो शारीरिक रूप से तो लड़-लड़ा नहीं सकते पर देखता हूँ कि वे बहुधा अपने विचारों से इतर विचारों के प्रति पूरी तरह आँखें बंद किये रहते हैं और एक अज्ञात श्रेष्टता के भाव से ग्रसित हैं, जो कई बार दुर्भावनापूर्ण आचरण पैदा कर देता है. मुझे विश्वास है कि चूँकि इन सभी लोगों की आप पर बहुत अधिक आस्था है और आप इनके बल पर एक नए समाज का सृजन करना चाहते हैं, अतः यदि इन्हें नए समाज का संदेशवाहक बनाना है तो उन्हें यह भी बताना होगा कि अपने अलावा अन्य लोगों का अस्तित्व और सबों की अपनी-अपनी श्रेष्टता और समुपयोगिता भी स्वीकार करना होता है.  
मैं अपनी बात समाप्त करता हूँ क्योंकि शायद वर्तमान में आगे मेरे पास और कुछ कहने को नहीं है. आप स्वयं ही अत्यंत बुद्धिमान हैं, मुझसे कहीं बहुत ज्यादा और यदि मेरी बातें बेकार हैं अथवा आप की जानकारी में है तो इसे सबसे नजदीक के रद्दी के टोकरी में डाल दीजियेगा. ये मेरे व्यक्तिगत विचार हैं जो अपनी व्यक्तिगत हैसियत में एक ऐसे व्यक्ति को समर्पित हैं जो स्वयं को समाज में कुछ नया करने को कृत-संकल्प बताता है और ऐसे में यदि मेरी थोड़ी सी बात भी आपके उपयोग की हुई तो मैं समझूंगा कि मेरा कंप्यूटर पर टिप-टिप करना सार्थक हो गया.
आपका,
(अमिताभ ठाकुर)
5/426, विराम खंड,
गोमतीनगर,
लखनऊ
# 094155-34526
amitabhthakurlko@gmail.com

3 comments:

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  2. Respected Amitabh Ji,

    I would like to make my submissions on your letter keeping your personal sentiments towards Arvind aside. You seem to make some critical mistakes here. You are suggesting a person to follow a path that will take away from him all the qualities that made him what he is and, hence, a subject of your envy. You want him to be turned into a 'you', not him. Each person has certain convictions. Gandhi ji said that if a person is serving greater goal of welfare of all by having a spirit of service, he must forage ahead on his path undeterred by criticism. Arvind may be, I am not sure, doing the same. You may also be doing the same. Hence, I would request you to recognize the futility of mine or your's tap-taps. There is nothing constructive about these two tap-taps.

    Your's truly,
    Vinit Kumar Upadhyay
    7838629151
    vinitkumarupadhyay@gmail.com

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  3. Respected Mr.Amitabh,,

    I am very happy to see " Critism" in your letter to Mr.Arvind.I expect Engineer to make society on strong foundation.Please do advice him to follow path of service,honesty,etc. unlike available in Politics.One day politics based on corruption,crime & caste( 3Cs) should be abolished like Zamindari System.He is trying to follow mistakes done by English People & presently being executed in USA.
    Our democracy is ruled & advice by service he left & now social work should give him satisfaction than Power he has achieved.
    Regards,

    Bibhanshu Sekhar Choudhary
    9934320453
    bschoudhary@gmail.com

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