Saturday, December 14, 2013

परेशान हूँ

परेशान हूँ

पता नहीं क्यों,
ढाई-तीन साल से
मुझे लग रहा है
कोई मुझको
लगातार अनवरत
बना रहा बेवकूफ
सरे-आम, सुबह-ओ-शाम,
नए नए फंडे,
नयी-नयी बातें,
नयी लफ्फाजियां,
नए-नए फंदे,
फंदों के धंधे,
धंधे कुछ गंदे,
कहीं कुछ गड़बड़,
कुछ भारी लफड़ा,
मन कहता बार-बार
कुछ तो है,
जो दिख नहीं रहा
पर छिपा कहीं है
आम आदमी
ऐसा नहीं होता
जैसा यहाँ दिख रहा
जोरों से बिक रहा,
कोई निजी दुश्मनी नहीं
निजी रंजिश नहीं
पर पाच नहीं रहा
इतना मीठा
इतना ज्यादा
इतनी बातें
इतने आदर्श
कहीं तो कुछ है
कुछ तो है,
यही डर सालता
मामला क्या है ?

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