उसे जब देखता हूँ,
कहते हुए कुछ खुद से,
समझ जाता है मन मेरा,
उसे चुप रहने की चाहत है.
वहाँ होता है जब अँधेरा
जल जाती है एक बाती,
उसी हलचल में छिप जाता
मेरे मन का पपीहा है.
नहीं कोई शिकायत है
नहीं कोई गिला मुझको
ये दुनिया ऐसे चलती है
किसी की सोच क्या का है?
मगर फिर भी कुछ ऐसा है
जो सोने ही नहीं देता
कहता है वो चुपके से
सबों को हक है जीने का.
उन्ही सपनों की थपकी में
कहीं धीरे से सिर रख के
मैं आगे चलता जाता हूँ,
कहीं दिख जाए इक सवेरा.
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