Wednesday, October 1, 2014

Fight for justice against doctors

Fight for justice against doctors

It is possibly not easy to fight against a doctor's alleged negligence. This is what Aliganj, Lucknow resident Suresh Chandra Shukla is finding at each stage of his fight for justice in wife Mamata Shukla’s death.

Ms Mamata, suffering from Hepatitis-C, died while being treated at SGPGI, Lucknow. He alleged Dr Vivek Anand Saraswat and Dr Srijeeth Venugopal of Gastroenterology department as being criminally liable for using the trial drug Thymocin Alpha-1 injection despite fully knowing that it has bone cancer as its side-effect and is permitted only for Hepatitis B patients.

Sri Shukla got his FIR registered in PGI police station, Lucknow in March 2014.after I personally intervened in that matter. Since then, he has been running from pillar to post but justice continues to elude him.

First he was refused the medical records of his wife’s treatment he had sought from SGPGI under Para 1.3.2 of the Code of Ethics Regulations, 2002 where providing such information within 72 hours is mandatory. He could get only after I wrote to SGPGI Director to immediately provide the information or I would approach the MCI for action under Para 8 of this Code.

He is again facing problems in getting an independent medical opinion sought in the investigation by the Police. CMO Lucknow has referred this case to Dr D K Chaudhary, Additional CMO and Dr R V Singh, Deputy CMO. Sri Shukla says that when he met Dr Chaudhary on 26 September, Dr Chaudhary not only behaved improperly with him, he also scolded Sri Shukla for pursuing the matter. Dr Chaudhary called Sri Shukla on the next date when he saw these doctors hobnobbing with Dr Saraswat. As per Sri Shukla, these doctors asked him to leave the room even without hearing him.

Sri Shukla presented me an application on which I have written to Principal Secretary Health and Family Welfare to get an expert medical committee formed to provide its independent opinion so that Sri Shukla finally gets justice in his case.

It seems fight for justice against negligent doctors is not an easy thing in our Nation.

डॉक्टरों के खिलाफ कानूनी लड़ाई 

शायद आपराधिक लापरवाही करने वाले डॉक्टरों से कानूनी लड़ाई आसान नहीं है. यह बात अपनी पत्नी ममता शुक्ला की मौत के मामले में न्याय पाने को संघर्षरत अलीगंज निवासी सुरेश चन्द्र शुक्ला हर कदम पर महसूस कर रहे हैं.

हेपेटाइटिस-सी से पीड़ित सुश्री ममता की मौत एसजीपीजीआई, लखनऊ में हो रहे इलाज के दौरान हो गयी. श्री शुक्ला ने इसके लिए गैस्ट्रोइंटेरोलोजी विभाग के डॉ विवेक आनंद सारस्वत और डॉ श्रीजीथ वेणुगोपाल को दोषी बताया कि उन्होंने प्रयोग के तौर पर जानबूझ कर ट्रायल ड्रग थाइमोसीन अल्फा-1 इंजेक्शन दिया जिससे हड्डी का कैंसर होने की काफी सम्भावना रहती है और जो मात्र हेपेटाइटिस बी रोगियों के लिए अनुमन्य है.

श्री शुक्ला ने इस सम्बन्ध में थाना पीजीआई में मार्च 2014 में मुक़दमा लिखाया, वह भी मेरे सीधे हस्तक्षेप के बाद. तब से वे न्याय के लिए लगातार दौड़ रहे हैं.

पहले कोड ऑफ़ मेडिकल एथिक्स 2002 के पैरा 1.3.2 के तहत अपनी पत्नी के इलाज से जुड़े मेडिकल रिकॉर्ड मांगे जाने पर पीजीआई उनकी प्रार्थना की अनदेखी करता रहा जबकि 72 घंटे में यह सूचना दिया जाना विधिक दायित्व है. उन्हें ये रिकॉर्ड भी तभी मिले जब मैंने पीजीआई के निदेशक को सूचना दिए जाने तथा सूचना नहीं मिलने पर एथिक्स कोड के पैरा 8 में कार्यवाही किये जाने की बात कहते हुए पत्र लिखा.

अब श्री शुक्ला पुलिस द्वारा माँगा गया स्वतंत्र चिकित्सकीय अभिमत प्राप्त करने के लिए दौड़ लगा रहे हैं. सीएमओ, लखनऊ ने यह मामला अपर सीएमओ डॉ डी के चौधरी और डिप्टी सीएमओ डॉ आर वी सिंह को संदर्भित किया है. श्री शुक्ला के अनुसार जब इस सम्बन्ध में अपनी बात कहने के लिए 26 सितम्बर को वे डॉ चौधरी से मिले तो डॉ चौधरी ने उनसे ना सिर्फ अपमानजनक व्यवहार किया बल्कि मामले का पीछा करने के लिए उन्हें भला-बुरा भी कहा और कहा कि क्या वे उनके कहने पर पीजीआई के डॉक्टर को फांसी पर चढ़ा दें. डॉ चौधरी ने उन्हें अगले दिन बुलाया जब उनके सामने डॉ सारस्वत इन डॉक्टरों के पास आये और उनके आते ही इन डॉक्टरों ने श्री शुक्ला की बात सुने बिना ही चैंबर से बाहर कर दिया.

श्री शुक्ला ने पुनः मुझसे संपर्क कर पूरी बात बतायी है जिसपर मैंने प्रमुख सचिव चिकित्सा और स्वास्थ्य को पत्र लिख कर विशेषज्ञ डॉक्टरों का एक नया बोर्ड गठित करवा कर निष्पक्ष चिकित्सकीय अभिमत दिलवाने हेतु निवेदन किया है ताकि श्री शुक्ला की लड़ाई अपने वांछित गंतव्य तक पहुँच सके.


Copy of letter----

सेवा में,
            प्रमुख सचिव
            चिकित्सा एवं स्वास्थ्य
            उत्तर प्रदेश शासन
            लखनऊ।
महोदय,
      निवेदन है कि मैं अमिताभ ठाकुर, आई0पी0एस0 नागरिक सुरक्षा विभाग, उ0प्र0 में संयुक्त निदेशक के पद पर कार्यरत् हूं।  मैं यह पत्र मानवाधिकार से जुड़े एक अत्यंत संवेदनशील प्रकरण में अपनी व्यक्तिगत हैसियत से आपके सम्मुख प्रस्तुत कर रहा हूं।
            श्री सुरेश चन्द्र शुक्ला, बी-29, सेक्टर-ओ, अलीगंज, लखनऊ द्वारा मुझे सम्बोधित करते हुए एक पत्र दिनांक 29 सितम्बर, 2014 प्रेषित किया गया है, जिसमें उन्होंने उल्लेख किया है कि उनकी पत्नी श्रीमती ममता शुक्ला की एस0जी0पी0जी0आई, लखनऊ में डा0 विवेक आनन्द सारस्वत और डा0 श्रीजीथ वेणुगोपाल द्वारा आपराधिक लापरवाही के कारण हुई मृत्यु  के संबंध में थाना पी0जी0आई0, लखनऊ में उपरोक्त दोनांे डाक्टरों के विरूद्ध अपराध सं0-87/2014 दिनांक 13.03.2014 दर्ज कराया गया था, जिसकी विवेचना थाना पी0जी0आई0 द्वारा की जा रही है। इसी क्रम में वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक, लखनऊ ने मरीज की चिकित्सा संबंधी अभिलेख सी0एम0ओ0, लखनऊ को भेजकर मेडीकल बोर्ड द्वारा अभिमत देने को कहा है।
            श्री शुक्ला के अनुसार प्रकरण में सी0एम0ओ0, लखनऊ ने मेडिकल बोर्ड गठित करने के बजाय डा0 (कैप्टन) डी0के0 चैधरी, अपर सी0एम0ओ0, व डा0 आर0वी0 सिंह, डिप्टी सी0एम0ओ0 को उक्त प्रकरण में आख्या देने को कहा है जो संबंधित क्षेत्र के विशेषज्ञ नहीं हैं जबकि मा0 सर्वोच्च न्यायालय द्वारा जैकब मैथ्यू बनाम स्टेट आफ पंजाब में स्पष्ट रूप से आदेशित किया गया है कि डाक्टरों की चिकित्सकीय लापरवाही के संबंध में अभिमत संबंधित क्षेत्र के विशेषज्ञों द्वारा ली जाए। श्री शुक्ला का यह भी कहना है कि डा0 विवेक आनन्द सारस्वत, एच0ओ0डी0, गेस्ट्रो, पी0जी0आई0, लखनऊ अपने प्रभाव का गलत इस्तेमाल कर जांच को प्रभावित कर रहे हैं। 
            निवेदन करना है कि श्री सुरेश शुक्ला मेरे पास इस प्रकरण में कई बार आते रहे हैं। यहां तक कि प्रकरण में मेरी पहल पर ही एफ0आई0आर0 दर्ज हुई और पुनः मेरे पत्र के बाद ही एस0जी0पी0जी0आई0, लखनऊ से इन्हें इलाज से संबंधित अभिलेख प्राप्त हुए हैं। प्रकरण में निष्पक्ष जांच न होने से श्री शुक्ला को न्याय नहीं मिल पा रहा है।  अतः उन्होंन मा0 उच्चतम् न्यायालय द्वारा जैकब मैथ्यू बनाम स्टेट आफ पंजाब प्रकरण में पारित दिशा-निर्देशां को दृष्टिगत रखते हुए Hepatology, Oncology & Pharmacology के विशेषज्ञ डाक्टरों का नया बोर्ड गठित कर उनके प्रकरण की जांच कराने का अनुरोध किया है ताकि निष्पक्ष रूप से जांच हो सके।
            श्री सुरेश चन्द्र शुक्ला ने अपने प्रार्थनापत्र में जो बातें कही हैं, वह अत्यंत गंभीर हैं। उनके द्वारा डा0 (कैप्टन) डी0के0 चैधरी, अपर सी0एम0ओ0, व डा0 आर0वी0 सिंह, डिप्टी सी0एम0ओ0 के विरूद्ध अपमानजनक व्यवहार किये जाने का जो आरोप लगाया गया है, उनकी गहराई से छानबीन किया जाना नितान्त आवश्यक है। साथ ही श्री शुक्ला द्वारा किये गये निवेदन कि इस प्रकरण में चिकित्सीय अभिमत हेतु मा0 उच्चतम् न्यायालय के आदेश के क्रम में विधि विशेषज्ञ डाक्टरों का नया बोर्ड गठित किया जाना आपने आप में पूर्णरूपेण विधि सम्मत प्रतीत होता है।
            अतः सादर निवेदन है कि कृपया श्री शुक्ला के प्रार्थनापत्र में दिये गये तथ्यों के क्रम में डाक्टरों द्वारा अनुचित आचरण की जांच कराये जाने की कृपा करें। यह भी निवेदन है कि कृपया मा0 उच्चतम् न्यायालय के आदेशों के क्रम में इस प्रकरण में एक विशेषज्ञ डाक्टरों का एक नया बोर्ड गठित कराये जाने की कृपा करें।
            निवेदन करूंगा कि श्री शुक्ला अपनी दिवंगत पत्नी स्व0 श्रीमती ममता शुक्ला की चिकित्सकीय लापरवाही से हुई मृत्यु के मामले में न्याय की लड़ाई लड़ रहे हैं अतः हम सभी का यह पुनीत कर्तव्य जान पड़ता है कि हम प्रत्येक दशा में उनकी न्यायोचित सहायता करें। 
            अतः श्री सुरेश चन्द्र शुक्ला के प्रार्थनापत्र की प्रति संलग्न करते हुए निवेदन है कि कृपया इनके प्रार्थनापत्र पर सहानुभूति विचार करते हुए समुचित कार्यवाही कराने की कृपा करंे।
                                                         भवदीय,
दिनांक  01 अक्टूबर, 2014
( अमिताभ ठाकुर )
5/426, विरामखण्ड,
गोमतीनगर, लखनऊ
मो0-94155-34526
प्रतिलिपि निम्नलिखित को कृपया आवश्यक कार्यवाही हेतु-
1. महानिदेशक, चिकित्सा एवं स्वास्थ्य सेवायें, उ0प्र0, लखनऊ।
2. महानिदेशक , चिकित़्सा शिक्षा, उ0प्र0, लखनऊ।
3. निदेशक, एस0जी0पी0जी0आई0, लखनऊ।
4. मुख्य चिकित्सा अधिकारी, लखनऊ।


Monday, September 29, 2014

Northern Railway initiative against obscene toilet remarks



Northern Railway takes initiative against obscene remarks in coach toilets

 

Yesterday I got a letter which gave me utmost satisfaction to know that one of my small initiatives had been appreciated by the concerned Department and appropriate action taken in this regards.  I am talking of letter from Northern Railway which has taken an initiative to completely eradicate the menace of obscene words, vulgar graffiti etc in coach toilets.

Presenting photograph of an obscene writing during his journey in Delhi-Lucknow Rajdhani Express in July 2014, I had requested the Chairman of Railway Board to initiate action to curb such obscene remarks.

Now Barjesh Dharmani, Deputy Chief Commercial Manager, Northern Railway has intimated me that instructions have been given to all divisions to instruct all the coach attendants and ticket checking staff to have a watch on such miscreants to curb such activities. On board staff has been directed to take remedial action to obliterate such remarks found during duties.

Mechanical Department has also been asked to launch a drive to erase and scrub such dirty remarks in the coach toilets.

I thank Northern Railway officers from the core of my heart.


ट्रेन शौचालयों में अश्लीलता हटाने को उत्तरी रेलवे की पहल 

 

कल एक पत्र प्राप्त होने पर मन अत्यंत हर्षित हो गया कि चलो मेरे एक प्रयास को संबंधित विभाग ने सराहा और उस पर ठोस कार्यवाही भी शुरू की. बात कर रहा हूँ उत्तरी रेलवे द्वारा भेजे एक पत्र की जिसके अनुसार उसने अपने सभी ट्रेनों के डिब्बों के शौचालय आदि में लिखी तमाम अश्लील बातों, गंदे चित्रों आदि को रोकने की दिशा में पहल किया है.

मैंने जुलाई 2014 में अपनी दिल्ली-लखनऊ राजधानी एक्सप्रेस यात्रा में इस प्रकार के लिखे अश्लील शब्द की तास्वीर प्रस्तुत करते हुए अध्यक्ष, रेलवे बोर्ड से इनके सम्बन्ध में कड़ी कार्यवाही का निवेदन किया था.

ब्रजेश धरमानी, उप मुख्य कमर्शियल मेनेजर, उत्तरी रेलवे ने मुझे पत्र भेज कर अवगत कराया है कि उत्तरी रेलवे के सभी डिवीज़न को आदेशित किया गया है कि वे सभी कोच अटेंडेंट तथा टिकेट निरीक्षण स्टाफ को इस प्रकार के कुत्सित हरकत करने वालों कर निगाह रखे. कोच स्टाफ को ऐसी अश्लील बातों को तत्काल हटाने के निर्देश दिए गए हैं.

साथ ही यांत्रिकी विभाग को एक अभियान चला कर सभी शौचालयों से ऐसी अश्लील बातों को हटाने के भी निर्देश जारी किये गए हैं.

उत्तर रेलवे के अधिकारियों को ह्रदय से आभार. 

 


सेवा में,
अध्यक्ष,
रेलवे बोर्ड,
भारत सरकार,
नयी दिल्ली
विषय- भारतीय रेल के विभिन्न ट्रेनों में अत्यंत अश्लील शब्दावली/ चित्र आदि के विषय में
महोदय,
      मैं अमिताभ ठाकुर पेशे से यूपी कैडर का एक आईपीएस अधिकारी हूँ और व्यक्तिगत स्तर पर विभिन्न सामाजिक कार्यों से भी जुड़ा रहता हूँ.

हाल में मैं लखनऊ से दिल्ली गया था और वहां से दिनांक 09/07/2014 को दिल्ली-लखनऊ राजधानी एक्सप्रेस (ट्रेन नंबर 12430), के थर्ड एसी के कोच न० बी9, जिसमे हमारा बर्थ नंबर 25 (पत्नी डॉ नूतन ठाकुर) तथा 28 (मेरा) था, से वापस लखनऊ लौट रहा था.
उस कोच के एक शौचालय में निम्न बात लिखी हुई थी -“लडकियां @@ के लिए हमसे बात करें. 81265-53157 पर, 81265-53157 काल मी. काल करें, B.T.K कर रहा हूँ. मेरी उम्र 22 वर्ष है. मेरा @@ 7 इंच लम्बा और मोटा है.” (@@ का प्रयोग दो अत्यंत अश्लील शब्दों के लिए किया गया है). ऐसा नहीं है कि मैंने इस तरह की लिखी बातें पहले भारतीय रेल में कभी नहीं देखी हो. मैं पूरे देश की बात नहीं जानता पर यूपी और बिहार, जहां मैंने अपने जिन्दगी का ज्यादातर हिस्सा बिताया है, में ट्रेनों के  शौचालयों में इस तरह की गन्दी बातें और तस्वीरें बहुत ज्यादा दिखती रही हैं, यद्यपि यह भी सही है कि ऐसी गन्दी तस्वीरें एसी कोच की तुलना में सेकंड क्लास में ज्यादा संख्या में दिख जाती हैं.
पूर्व में भी कई बार इस तरह की तस्वीर, शब्द आदि देख कर मुझे एक अजीब सी वितृष्णा और नाराजगी होती थी पर इस बार मैंने निश्चित किया कि मैं यह प्रकरण रेलवे के वरिष्ठतम अधिकारियों के संज्ञान में लाऊंगा और उनसे यह अनुरोध करूँगा कि वे इस प्रकार की गंदगी को रेलवे से दूर करने का पुख्ता इंतज़ाम करें. अतः मैंने इन शब्दों की फोटो खींची जिसे मैं इस पत्र के साथ सम्बद्ध कर रहा हूँ.
आप स्वयं सहमत होंगे कि सार्वजनिक स्थानों पर, रेलवे ट्रेन की कोचों में, इस तरह की घटिया, अश्लील और ओछी बातें किसी भी प्रकार से उचित नहीं हैं. ट्रेन में हर प्रकार के और हर उम्र के लोग आते-जाते हैं, महिलायें होती हैं, बच्चे-बच्चियां होते हैं. इसके अलावा कई बार देश-विदेश के लोग भी यात्रा करते हैं. जाहिर है कि जब वे ट्रेन के शौचालय में जाते हैं और वहां ऐसी भद्दी बातें और गन्दी तस्वीरें देखते हैं तो उन्हें किसी भी प्रकार से अच्छा नहीं लगता होगा. सार्वजनिक स्थान पर इस प्रकार की अश्लीलता अपने आप में अपराध और घृणित तो है ही, यह पूरे रेलवे प्रशासन के प्रति भी अनुचित सन्देश देता है.

चूँकि ये सारी ट्रेनें और उसके कोच रेलवे मंत्रालय के सम्पूर्ण नियंत्रण में है जहां रेलवे विभाग के हर प्रकार के स्टाफ काम करते हैं, अतः जब भी कोई व्यक्ति शौचालयों में इस प्रकार की अश्लील टिप्पणी आदि देखता है, चाहे अनचाहे वह सबसे पहले रेलवे विभाग को इसके लिए दोषी और उत्तरदायी समझता है. उसके मन में आता है कि रेलवे विभाग अपने पूर्ण नियंत्रण में रहने वाले इन स्थानों पर इस तरह की गन्दी हरकतों को क्यों नहीं रोकता? और यदि ऐसी हरकतें नहीं रुक पा रही हैं तो कम से कम यह जिम्मेदारी क्यों नहीं लेता कि जिन रेलवे अधिकारियों (कोच कंडक्टर, टीटीई, कोच सहायक आदि) के अधीन वे कोच हैं जिनमे इस तरह की बातें लिखी पायी जाती हैं, उन के खिलाफ कार्यवाही की जाए और उनका इस सम्बन्ध में उत्तरदायित्व नियत किया जाए? साथ ही यह प्रश्न भी प्रत्येक व्यक्ति के जेहन में आता है कि यदि किसी ने छुप-छुपा कर ऐसी गन्दी हरकत कर भी दी तो जब ट्रेन साफ़-सफाई आदि के लिए यार्ड में जाता है तो इस तरफ ध्यान क्यों नहीं दिया जाता है और यदि ऐसी कोई अभद्र टिप्पणी, तस्वीरें आदि दिखती हैं तो उन्हें साफ़ करने की जगह उन्हें जस का तस क्यों छोड़ दिया जाता है ताकि आगे आने वाला हर आदमी उसे जाने-अनजाने पढ़ सके.
आप सहमत होंगे कि शौचालय में कौन क्या कर रहा है इस पर निगाह रखना आसान नहीं है पर आप इस बात से भी सहमत होंगे कि ऐसा करने वाले लोग बहुत अधिक संख्या में नहीं होते और यदि कोच के सम्बंधित स्टाफ को यह जानकारी हो कि इस तरह की बातों पर निगाह रखना भी उनकी जिम्मेदारी में आता है तो वे निश्चित रूप से सजग रहेंगे और इन घटनाओं की पुनरावृत्ति होने की सम्भावना काफी कम हो सकती है. अभी ऐसा लगता है कि इस प्रकार की टिप्पणियाँ आदि रेलवे की प्राथमिकता में बिलकुल नहीं है, जिसके कारण ऐसा करने वालों के हौसले भी बढे रहते हैं और इस प्रकार की अभद्र टिप्पणियाँ/चित्र भारी संख्या में अंकित होते हैं जो सालों-साल यथावत बने रहते हैं, जबकि सार्वजनिक स्थान पर और राजकीय संपत्ति पर इस प्रकार की अश्लील बातें एक आपराधिक कृत्य भी हैं और भारी प्रशासनिक लापरवाही भी.
उपरोक्त तथ्यों के दृष्टिगत मैं आपसे निम्न निवेदन कर रहा हूँ-
1.       रेलवे ट्रेन के शौचालयों तथा अन्य स्थानों पर किसी प्रकार के अश्लील चित्रों/टिप्पणियों/शब्दों आदि की उपस्थिति को सभी स्तरों पर गंभीरता से लेने के कड़े निर्देश निर्गत करें
2.       ट्रेन के शौचालयों और अन्य स्थानों पर ऐसी अश्लील टिप्पणियों आदि की उपस्थिति के विषय में सम्बंधित कोच के स्टाफ की निश्चित जिम्मेदारी और उत्तरदायित्व निर्धारित करने के सम्बन्ध में आवश्यक निर्देश निर्गत करने की कृपा करे
3.       ट्रेन के शौचालयों और अन्य स्थानों पर ऐसी अश्लील टिप्पणियों के अंकित होते ही यार्ड में अगली सफाई आदि होने के समय इन टिप्पणियों/चित्रों आदि को तत्काल हटाये जाने के सम्बन्ध में स्पष्ट निर्देश निर्गत करने की कृपा करें
निवेदन करूँगा कि ये निर्देश महिलाओं, बच्चे-बच्चियों, संवेदनशील नागरिकों सहित समस्त लोगों के लिए सकूनदायक सिद्ध होंगे और वर्तमान में रेलवे द्वारा जिस प्रकार अनजाने में इन आपराधिक कृत्यों में सहभागी की भूमिका निभायी जा रही है, उसे समाप्त करते हुए आम लोगों की निगाहों में भी रेलवे की छवि को बेहतर बनाने में सहायक होंगे.
पत्र संख्या- AT/Rail/Graffiti                                      भवदीय,
दिनांक-11/07/2014
                                                              (अमिताभ ठाकुर )
                                                                  5/426, विराम खंड,
                                                            गोमती नगर, लखनऊ
                                                                                                                                                                 # 94155-34526
                                                                                                                                                amitabhthakurlko@gmail.com