Thursday, August 7, 2014

FIR finally registered in Brazilian NRI cheating case

FIR finally registered in Brazilian NRI cheating case

An FIR No 216 of 2014 under sections 419, 420, 467, 468, 471 IPC has finally been registered on my application in Kakadeo police station, Kanpur about cheating and misappropriation of US$ 30289 (approx 18.25 lakh rupees) from a retired Indian Gauri Shankar Prakash residing in Brazil. The FIR has been registered against Vikram Hans, ex CMD and Praveen Singh present MD of Uttar Pradesh Industrial Consultants Limited (UPICO), Kanpur.

The FIR accuses UPICO of refusing the legitimate claims of Gauri Shankar, who along with Brazilian national Marco Antonio Torres Carvalho worked for UPICO during December 2008 to April 2009 spending their personal money on the official directions of A K Bhatnagar, then CMD, UPICO and swindling the money through forgery in the accounts and the balance sheet.

I had given this application on 20 June and had talked to SHO Kakadeo and SSP Kanpur Nagar who had assured immediate registration of FIR. But instead the application was sent for enquiry after which the FIR has been registered. This is completely contrary to the rules and hence I have written to DGP, UP seeking action against all those responsible for this delay because I am of the strong opinion that registration of each FIR is a legal right and it needs to be done without any discrimination in every case.


एनआरआई से धोखाधड़ी मामले में अंततोगत्वा एफआईआर दर्ज

उत्तर प्रदेश इंडस्ट्रियल कंसल्टेंट्स लिमिटेड (यूपीको), कानपुर के कुछ अफसरों द्वारा अभिलेखों में हेराफेरी कर ब्राजील में रह रहे एक रिटायर्ड भारतीय गौरी शंकर प्रकाश के 30289 यूएस डॉलर (18.25 लाख रुपये) हड़पे जाने के सम्बन्ध में मेरे प्रार्थनापत्र पर अंततोगत्वा थाना काकादेव में एफआईआर संख्या 262/2014 धारा 409, 420, 467, 468, 471 आईपीसी दर्ज किया गया है. मामले में विक्रम हंस, पूर्व सीएमडी और प्रवीण सिंह, मौजूदा एमडी अभियुक्त बनाए गए हैं.

प्रार्थनापत्र में गौरी शंकर द्वारा ब्राजील निवासी मार्को अंतोनियो टोर्रेस कार्वाल्हो के साथ मिल कर दिसंबर 2008 से अप्रैल 2009 के बीच यूपीको द्वारा ब्राजील में कराये गए कार्यक्रम में शोरूम, वेयरहाउस आदि पर एके भटनागर, सीएमडी यूपीको के आदेश पर किये गए खर्च के बिल का भुगतान नहीं करने और इसके लिए अभिलेखों और बहीखाते में कूटरचना करने के आरोप लगाए गए थे.

मैंने यह प्रार्थनापत्र 20 जून को दिया था और एसएसपी कानपुर नगर और थाना प्रभारी काकादेव से व्यक्तिगत बात की थी जिन्होंने तत्काल एफआइआर का आश्वासन दिया था. लेकिन एफआईआर दर्ज करने की जगह मामले को जांच में भेज दिया गया और अब जांच में संस्तुति के बाद ही यह एफआईआर दर्ज हो सका है. मैंने इतने विलम्ब से एफआईआर दर्ज किये जाने के सम्बन्ध में डीजीपी यूपी को पत्र लिख कर विलम्ब से एफआईआर लिखने के लिए जिम्मेदार सभी अधिकारियों के खिलाफ कार्यवाही करने की मांग की है क्योंकि मेरा यह दृढ मत है कि प्रत्येक नागरिक को अपना एफआईआर दर्ज कराने का कानूनी अधिकार है और इसका बिना भेदभाव के पालन होना चाहिए


Copy of FIR--



सेवा में,
प्रभारी निरीक्षक,
थाना काकादेव,
जनपद- कानपुर नगर 

महोदय,
       मैं अमिताभ ठाकुर वर्तमान में आईजी/संयुक्त निदेशक, नागरिक सुरक्षा, उत्तर प्रदेश लखनऊ के पद पर तैनात हूँ और आपके समक्ष उत्तर प्रदेश इंडस्ट्रियल कंसल्टेंट्स लिमिटेड (यूपीको), कानपुर पता 5वां तल, कबीर भवन, जीटी रोड, सर्वोदय नगर, थाना काकादेव, कानपुर- 208002 (फोन नंबर 0512-2216135, 2213596 फैक्स- 0512-2242719, वेबसाइट http://www.upico.org/) से जुड़ा एक गंभीर प्रकरण प्रस्तुत कर रहा हूँ जो मुझे मेरे एक परिचित वर्तमान में ब्राजील में निवास कर रहे श्री अमिताभ रंजन द्वारा अवगत कराया गया.
श्री अमिताभ रंजन ने विभिन्न तिथियों में अपने ईमेल
missionamitabh@yahoo.com से मुझे मेरे ईमेल amitabhthakurlko@gmail.com पर एक श्री गौरी शंकर प्रकाश पीरुपल्ले (ईमेल gourisankarprakash@ig.com.br) से जुड़ा प्रकरण बताया.  श्री गौरी शंकर जमशेदपुर, झारखण्ड से रिटायर हो कर 1978 से ब्राजील में बसे हुए हैं.
इन ईमेल के अनुसार दिसंबर
2008 से अप्रैल 2009 के मध्य यूपीको ने ब्राजील में कुछ कार्यक्रम आयोजित किये. इस कार्यक्रम हेतु पैसा भारत सरकार के कॉमर्स मंत्रालय द्वारा वहां किया जाना था. भारत सरकार के निर्देशों और सहयोग के बल पर यूपीको ने ब्राजील में यह वृहद् कार्यक्रम आयोजित किया जिनमे शोरूम, वेयरहाउस तथा अन्य तमाम खर्चे के लिए यूपीको की ओर से जार्डिम, साओ पाउलो, ब्राजील के निवासी श्री मार्को अंतोनियो टोर्रेस कार्वाल्हो नियत किये गए थे. श्री कार्वाल्हो ने अपने स्तर से यूपीको की जानकारी और सहमति से श्री गौरी शंकर प्रकाश को इस कार्य में अपना सहयोगी बनाया और इस प्रकार श्री प्रकाश और श्री कार्वाल्हो ने मिल कर एक साथ यूपीको के लिए ब्राजील में काम किया और इस अवधि में यूपीको को विभिन्न प्रकार की सुविधा मुहैया कराई और इसमें अपने पैसे खर्च किये.
श्री कार्वाल्हो ने अन्य बातों के अलावा श्री फ्रांसिस्का नेलिडा ओस्त्रोविच्ज़, निवासी अवेनिदा एंजेलिका, ब्राजील के साथ दिनांक
01/02/2008 को श्री ओस्त्रविच्ज़ के मकान का लीज एग्रीमेंट किया. इसके अतिरिक्त इस पूरी अवधि में श्री कार्वाल्हो के कई अन्य खर्चे भी हुए. मुझे जो बिल भेजे गए हैं उनमे दिसंबर 2008 से अप्रैल 2009 के 5 महीने के बिजली, प्राकृतिक गैस, वीआईपी होटल बिल, ऑफिस रेंट, टेलेफोन, इन्टरनेट, पेट्रोल, कार पार्किंग, ऑफिस सामग्री, पार्सल आदि के साथ श्री गौरी शंकर प्रकाश के फीस सम्मिलित हैं. इन बिल के साथ तमाम ऐसी रसीदें संलग्न हैं जो श्री प्रकाश की बात को पुख्ता करती हैं.
श्री कार्वाल्हो और श्री गौरी द्वारा श्री परवेज़ अहमद, तत्कालीन कंसल्टेंट को संयुक्त रूप से भेजा गया पत्र दिनांक
16/04/2009 इस हेतु विशेष रूप से महत्वपूर्ण है जिसमे दोनों ने सामूहिक रूप से अवगत कराया है कि कुल 58,750.76 डॉलर श्री कार्वाल्हो के एकाउंट में ट्रांसफर किया जाना था जिसमे श्री कार्वाल्हो और श्री गौरी शंकर द्वारा परस्पर सहमति से श्री कार्वोल्हा के 16,539.43 डॉलर तथा श्री गौरी शंकर प्रकाश के 42,211.33 डॉलर हैं.
इसके बाद श्री गौरी शंकर ने ना जाने कितनी ही बार यूपीको के अधिकारियों को पत्र और ईमेल द्वारा ब्राजील शोरूम एवं वेयरहाउस पर दिसंबर
2008 से अप्रैल 2009 के बीच किये गए उनके खर्च के विषय में अवगत कराया पर यूपीको ने तब से अब तक श्री गौरी शंकर के पैसे देने से मना किया है, जबकि तथ्यात्मक स्थिति यह है कि इस प्रोजेक्ट के लिए कॉमर्स मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा काफी पहले ही आवश्यक फंड रिलीज़ हो चुका है. श्री गौरी शंकर बार-बार यह लिख रहे हैं कि उन्होंने अपने जेब से पैसे खर्च किये थे, ब्राजील में उन्हें इसके लिए काफी ब्याज दर देना पड़ रहा है लेकिन यूपीको इसे पूरी तरह नज़रंदाज़ कर रहा है.
श्री गौरी शंकर का कहना है कि फ़रवरी
2009 में यूपीको के पूर्व एमडी श्री ए के भटनागर (फोन नंबर 09873187789) की जगह श्री विक्रम हंस नए सीएमडी बने और उनके आश्वासन पर भी श्री गौरी शंकर ने बदस्तूर अप्रैल तक अपना काम जारी रखा था. श्री गौरी शंकर ने अपने इन ईमेल में कहा कि श्री विक्रम हंस ने उन्हें वादा किया था कि जुलाई 2009 तक प्रत्येक दशा में उनका पैसा मिल जायेगा. इसके बाद श्री गौरी शंकर लगातार ईमेल और श्री विक्रम हंस के फोन नंबर 09984296555 पर संपर्क करते रहे पर उन्हें अपना पैसा आज तक नहीं मिला जबकि कॉमर्स मंत्रालय ने  जुलाई 2009 में ही ब्राजील प्रोजेक्ट की धनराशि रिलीज़ कर दी थी.  
मैंने इस सम्बन्ध में श्री विक्रम हंस, पूर्व सीएमडी और श्री प्रवीण सिंह, वर्तमान सीएमडी से भी बात की लेकिन उससे कोई नतीजा नहीं निकला. उन दोनों ने कहा कि श्री गौरी शंकर का दावा झूठा और गलत है और उसमे कोई दम नहीं है. उन्होंने कहा कि ब्राजील प्रोजेक्ट के लिए प्राप्त पूरी धनराशि का ऐडजस्टमेंट हो गया है और अब इसमें कोई बात शेष नहीं है. उन्होंने कहा कि इस सम्बन्ध में उनके रिकार्ड्स में श्री गौरी शंकर प्रकाश का कोई भी क्लेम नहीं है और इस प्रकार उनके क्लेम के सम्बन्ध में अब कोई भी चर्चा बेमानी है. उन दोनों की बात से ऐसा लग रहा था कि वे अब इस मुद्दे को पूरी तरह भूल जाना चाहते हैं.
इसके विपरीत श्री ए के भटनागर, पूर्व सीएमडी यूपीको, जिनके समय इस प्रकरण की शुरुवात हुई, ने मुझसे अपनी बातचीत में स्पष्टतया स्वीकार किया कि श्री गौरी शंकर के साथ ठगी की जा रही है, उन्होंने यूपीको के साथ काम किया था, उनका यूपीको पर पैसा बकाया है पर यूपीको उनका पैसा नहीं दे रहा. श्री भटनागर के अनुसार इसके मुख्य बात यह है कि यूपीको को कॉमर्स मंत्रालय से पैसा मिल गया है पर उन्होंने इसे गलत ढंग से इधर-उधर फर्जी खर्चा दिखा कर श्री गौरी शंकर के जायज खर्चे को देने से मना कर रहे हैं. श्री भटनागर ने मुझे बताया कि यूपीको के पूर्व सीएमडी श्री विक्रम हंस सहित कुछ सम्बंधित अधिकारियों ने मिल कर अपना बैलेंस शीट अपनी मर्जी से गलत-सही बना लिया और श्री गौरी शंकर को पैसा नहीं दिया. उन्होंने बताया कि इस मामले में यूपीको द्वारा फर्जी दस्तावेज़ बनाए गए हैं और इनके आधार पर श्री गौरी शंकर के वाजिब हक़ को दरकिनार किया जा रहा है.
श्री भटनागर ने मुझे इस सम्बन्ध में अपने ईमेल ak@monashlimited.com से भेजे कई मेल भी भेजे. इनमे दिनांक 08/08/2009  को श्री विक्रम हंस को भेजे मेल में यह बात स्पष्ट रूप से कहा. साथ ही इसमें अपने पूर्व ईमेल दिनांक 05/08/2009 में भी उन्होंने यह बात कही थी और यह भी बताया था कि इस हेतु सरकारी ग्रांट मिल चुका है. श्री भटनागर ने पुनः अपने मेल दिनांक 13/08/2009 द्वारा यह बात दुहराई थी. उन्होंने साफ़ कहा था कि यदि श्री गौरी शंकर प्रकाश का वाजिब बकाया नहीं दिया गया तो इसके लिए यूपीको जिम्मेदार होगा.
इसके अतिरिक्त श्री गौरी शंकर के ईमेल दिनांक 28/09/2009, 01/10/2009, 04/02/2011 की प्रति मेरे पास है जिनमे उनके द्वारा बार-बार कहा कि श्री विक्रम हंस से फोन नंबर 09984296555 पर बात करने और उनके व्यक्तिगत आश्वासन और के बाद भी उन्हें आज तक अपना पैसा नहीं मिला है. उन्होंने इन मेल में अपने R$ 42.211,33 + R$ 9.280,20 अर्थात R$ 51491,53 { बिना ब्याज } = 30289,14 यूएस डॉलर बकाये की मांग की है.
हाल में श्री अमिताभ रंजन के मेरे संपर्क में आने के बाद और मेरे द्वारा श्री गौरी शंकर प्रकाश की मदद करने का आश्वासन देने के बाद श्री गौरी शंकर ने अपने ईमेल दिनांक 14/06/2014 द्वारा मुझे इस सम्बन्ध में अग्रिम कार्यवाही किये जाने हेतु अधिकृत किया जिसके बाद मैं श्री गौरी शंकर के प्रकाश के R$ 51491,53 { बिना ब्याज } = 30289,14 यूएस डॉलर (जो वर्तमान डॉलर रुपये समतुल्य के अनुसार आज की तिथि को 18.25 लाख रुपये हुए) यूपीको के विभिन्न अधिकारियों द्वारा भारत सरकार से धन प्राप्त हो जाने के बाद भी छलपूर्वक हथिया लेने, इस हेतु अपने एकाउंट बुक में गलत खाता-बही का सृजन करने, कूटरचना, मिथ्या दस्तावेज़ की रचना करने और इस प्रकार सरकारी धन का गबन कर लेने के गंभीर अपराध के सम्बन्ध में यह प्रार्थनापत्र आपके सम्मुख एफआइआर दर्ज किये जाने हेतु प्रस्तुत कर रहा हूँ ताकि श्री गौरी शंकर प्रकाश जैसे एक वरिष्ठ नागरिक, जिन्होंने देश सेवा के जज्बे से ब्राजील में अपना खर्च कर ब्राजील प्रोजेक्ट में अपना पैसा और समय खर्च कर योगदान किया और इसके बदले उन्हें यूपीको, कानपुर के कुछ अधिकारियों द्वारा यूपीको, कानपुर में धोखा मिला, उनके साथ न्याय हो सके और इस मामले में अब तक जो गलत सन्देश जा रहा है उसका समापन हो सके.
निवेदन करूँगा कि श्री गौरी शंकर प्रकाश की ओर से समस्त तथ्य प्रस्तुत करने हेतु मैं निरंतर आपकी सेवा में उपस्थित रहूँगा.

पत्र संख्या-
AT/Brasil/01                                        भवदीय,
दिनांक
-20/06/2014
                                                              (अमिताभ ठाकुर )
                                                           
      5/426, विराम खंड,
                                                            गोमती नगर, लखनऊ

                                                                                                                                                                    # 94155-34526
 

Saturday, August 2, 2014

Nutan's experience before Lucknow Police

Nutan's experience before Lucknow Police

Wife Nutan today got to have a close look she went to the Hazratganj police station to get an FIR of mine registered there.

I along with Lucknow based Ashutosh Pandey have been in touch with a white-collar gang whose members claiming themselves as officers of Insurance Regulatory and Development Board (IRDA) contact persons all over India assuring them of ameliorating their insurance related problems. During this contact, they get money from these people in different ways and also procure important documents like PAN Card, Bank Account number etc, as they attempted with us as well.

We got deep into the matter and obtained the phone numbers, Delhi based address and details of the Lucknow contact of this gang and presented an FIR to Hazratganj police station which was taken there by Nutan.

There the Inspector refused to meet her in name of some meeting and directed her to SI Shyam Chandra Tripathi and Ajay Kumar Dwivedi. These two sub inspector kept Nutan sitting for long and asked many irrelevant questions in the process. When she provided reasonable answers to all these queries and requested to get the FIR registered, they talked with her in a highly derogatory manner as if she was seeking some illegal favour, while she was only asking for a legal right. They straight-away refused to register the FIR. Even her request to receive the application was blatantly refused by them saying that they do not just receive any application brought before them. Even the Hazratganj Inspector did not interfere despite being contacted.

Nutan has written to SSP Lucknow not only to get the FIR registered but also to get the matter enquired and take strong disciplinary action against these sub inspectors as per the enquiry report. Being a social activist who never tries to use her position as wife of a senior IPS officer, Nutan takes such bad episode in right earnest but such events are certainly not good for the police perception.

Two things definitely emerge from this episode-
1. The Police needs to come up with a uniform policy about registering FIRs and shall follow it in each case
2. There is a great need to focus on the behavioral aspect of police because bad behaviour further hurts its already poor public image

नूतन का लखनऊ पुलिस से साबका

नूतन का लखनऊ पुलिस से साबका

आज मेरी पत्नी नूतन को लखनऊ पुलिस का ख़ास चेहरा तब देखने को मिला जब वे मेरा एक एफआईआर ले कर थाना हजरतगंज गयीं.

मैं और लखनऊ स्थित Ashutosh Pandey पिछले लगभग एक माह से एक ऐसे गैंग के संपर्क में हैं जिसके सदस्य खुद को बीमा विनियामक और विकास प्राधिकरण (आईआरडीए) के अफसर बता कर तमाम लोगों को फोन करते हैं और उनसे बीमा सम्बन्धी किसी भी समस्या का निदान करने का आश्वासन देते हैं. इसी दौरान ये लोग सम्बंधित व्यक्ति से किसी ना किसी बहाने पैसे ले लेते हैं तथा इनके पैन कार्ड, बैंक अकाउंट जैसे महत्वपूर्ण अभिलेख प्राप्त कर लेते हैं, जैसा हम दोनों के साथ भी प्रयास किया गया.

हम दोनों लोगों ने पूरा प्रयास कर इस गैंग के तमाम लोगों के फ़ोन नंबर, उनके लखनऊ स्थित एक साथी का नाम और फोन नंबर और उनका दिल्ली स्थित पता ज्ञात कर थाना हजरतगंज के लिए एफआईआर दिया जो नूतन थाने पर ले गयीं.

थाने पर इन्स्पेक्टर ने मीटिंग के नाम पर मिलने से मना कर दिया और उपनिरीक्षक श्याम चन्द्र त्रिपाठी और अजय कुमार द्विवेदी से बात करने को कहा. इन दोनों पुलिसवालों ने पहले तो बहुत देर तक नूतन को बैठाये रखा और उनसे तमाम बिलावजह के सवाल पूछे. जब नूतन ने उनके सारे उलटे-पुल्टे सवालों का उत्तर दे दिया और यह भी स्पष्ट कर दिया कि प्रार्थनापत्र के अनुसार ना सिर्फ संज्ञेय अपराध बनता है बल्कि इसका घटनास्थल भी हजरतगंज है तो उन दोनों ने सीधे-सीधे बड़ी बदतमीजी के साथ कहा कि किसी भी कीमत पर एफआईआर दर्ज नहीं की जायेगी. जब नूतन ने कम से कम प्रार्थनापत्र रिसीव करने को कहा तो उन दोनों उपनिरीक्षक ने इसके लिए भी साफ़ इनकार कर दिया और कहा कि वे ऐसे ही हर किसी का प्रार्थनापत्र रिसीव नहीं किया करते हैं कि कोई भी चला आये और उसका प्रार्थनापत्र रिसीव हो जाए. नूतन ने इन्स्पेक्टर से बात करने की कोशिश की पर उन्होंने भी बात करने से मना कर दिया.

अब उन्होंने इस पूरी घटना का उल्लेख करते हुए एसएसपी लखनऊ को पत्र लिखा है और एफआईआर दर्ज कराने के साथ इस प्रसंग की जांच कराते हुए दोषी पाए जाने पर गलत आचरण के लिए जिम्मेदार दोनों उपनिरीक्षकों के खिलाफ कार्यवाही की भी मांग की है.

एक ऐसी सामाजिक कार्यकर्ता, जो अपने पति के वरिष्ठ आईपीएस अफसर होने को अपने कार्यों के लिए कभी भी उपयोग नहीं करती, होने के नाते नूतन व्यक्तिगत स्तर पर ऐसे गंदे अनुभवों को अपने कार्य का हिस्सा मान कर चलती हैं लेकिन निश्चित रूप से ऐसी घटनाएं पुलिस के लिए नुकसानदेह हैं.

इस प्रकरण से दो बातें निश्चित रूप से सामने आती हैं -
1. पुलिस को एफआईआर दर्ज करने के सम्बन्ध में एक सार्वभौम नीति बना कर उसका हर मामले में पालन करने की सख्त जरुरत है
2. पुलिस के व्यवहार पक्ष के प्रति विशेष ध्यान देने की जरुरत है क्योंकि खराब व्यवहार उसके बुरे इमेज को और बदतर करने का काम करता है

Sunday, July 20, 2014

“Nirbhaya Memorial” in Lucknow

“Nirbhaya Memorial” in Lucknow

People’s Forum shall be coming up with a memorial of Woman Pride in Lucknow in remembrance, respect and honour of all the women folk who are subjected to any kind of sexual cruelty, sexual assault, rape and other such sexual offences.

The Memorial, called the Nirbhaya memorial, shall consist of statute of a woman as the symbol of all hopes and virtues representing womanhood vis-à-vis a grotesque demon representing the evil lecherous men who indulge in these offences so as to present women’s struggle against all kinds of sexual injustice and the ugliness of such acts.

This memorial shall be in honour of all Indian women belonging to any religion, region, class or creed. The purpose of this memorial will be to remind the people of the tremendous struggle of womenfolk against sex-related offences and also to act as a resistant to those who want to indulge in such horrendous crimes.

 

लखनऊ में "निर्भया मेमोरियल”

पीपल्स फोरम जल्द ही नारी अस्मिता के प्रतिक के रूप में समस्त नारी संवर्ग की प्रतिष्ठा और किसी भी प्रकार के यौन हिंसा, यौन उत्पीडन, बलात्कार आदि की शिकार हुई महिलाओं की याद और सम्मान में “निर्भया मेमोरियल” का निर्माण करेगा.

निर्भया मेमोरियल के तहत नारीत्व को दर्शाती और समस्त महिलाओं की आशाओं और गुणों को दर्शाती एक नारी की मूर्ती और उसके समक्ष ऐसे दुष्कर्मों और दुष्कृत्यों में संलग्न सभी पुरुषों का प्रतिनिधित्व करती घिनौने पुरुष दैत्य की मूर्ति होंगी जो समस्त प्रकार के यौन उत्पीडन के प्रति महिलाओं के संघर्ष को दर्शायेंगी.

यह मेमोरियल इस देश के सभी धर्म, जाति, संप्रदाय, वर्ग की महिलाओं के सम्मान में बनाया जा रहा है. इस मेमोरियल का उद्देश्य महिलाओं द्वारा यौन-सम्बंधित हिंसा और अपराधों के प्रति किये जा रहे भयावह संघर्ष का द्योतक बनना और भविष्य में ऐसा कोई अपराध करने की सोचने वाले पुरुष को ऐसा करने से रोकने का कारक बनना है.


Amitabh Thakur # 094155-34526
Dr Nutan Thakur # 094155-34525

Thursday, July 17, 2014

On-the-spot study by People’s Forum in Kanth episode

On-the-spot study by People’s Forum in Kanth episode

Introduction- People’s Forum is a Lucknow based social organization which works mainly in the field of transparency and accountability in public life and Human Rights. This study was conducted by me, social activists Saleem Beg, Dr Nutan Thakur, Danish Khan, Abhishek Singh and others. Here the two concerned parties, various political persons, administrative officers and intellectuals were approached and an attempt was made to study the matter through an academic perspective. At the same time, suggestions have been given to reduce such incidences in future. The detailed report shall be sent to the Central and State government. 

Important conclusions-

1.       The most important conclusion is that for various historic and social reasons, today the harsh reality is that communal feeling and an internal distrust has become a fact in this region which always comes to the fore at the slightest pretext. This fact is apparent from the exactly opposed version given by the villagers about the temple and the loudspeaker where one group said that loudspeaker was in use for years, the other group said that till recently there was not even a gate and boundary in the temple and the loudspeaker was used only on few special occasions
2.       Hence the administration of these regions need to accept that communal feelings like deep in the psyche and they need to be extremely alert about this
3.       This incidence also makes it clear that for people of these regions, communal feelings become more important than many other issues related with day to day life and they get more deeply and more quickly affected by communal feelings vis-à-vis many issues related with their livelihood
4.       Hence we need to come out of our thinking that only political parties and vested interests are responsible for these incidences and we need to accept that religious and communal feelings are very deeply ingrained in common people
5.       Political parties are aware of this reality and hence they are always in search of them because they know that poor, semi-literate people can be swayed more easily through such issues as can be seen from Kanth episode. Here again the political parties supported the issue assisting it to acquire larger context but they could do it only because the local people gave them a fertile ground
6.       This episode once again makes it clear that since vote is the most important thing for political parties and religious feelings are the easiest and most effective means to garner votes, hence they are naturally in search of every such occasion. Here again efforts of polarization were very apparent. The matter which might have ended easily blew out of proportion because of political involvement
7.       Since the basic aims of administration and political parties are different and while vote and people’s support is more important to political parties and law order and rule of law is more important to administration, hence administration must accept this basic reality. Thus whenever such incidence take place, the administrative officers shall focus themselves on their own work and strategy instead of pointing fingers at one or more political parties because fundamentally their work and purpose are not the same
8.       In this episode, certain administrative officers seem to have forgotten this cardinal principle and instead of focusing on their work, they were found commenting on political parties which could have been easily avoided because firstly it was not needed, secondly this gave an alibi for subordinate staff to hide their faults and thirdly this acted as a catalyst to enhance the issue. Hence, knowingly or unknowingly some administrative officers became a party where certain groups started questioning their neutrality, having its detrimental effect on their functioning.
9.       Even if there was internal communal feeling among people and the political parties came in between but the administrative responsibility was definitely found for whatever untoward events happened. The episode went for a long time and there were many things that could have been avoided at different ends. Better communication, more direct contact with the affected people and more balanced approach could have certainly yielded better results. When loudspeaker had already been installed then knowing the sensitivity of the month, taking off the loudspeaker in presence of large police force should have been avoided
10.   Since there was large police force present on the day of taking off the loudspeaker, hence even if some villagers were protesting this act, there does not seem to be any reason to arrest them because arresting women and others in presence of such large police force sent wrong signals and they started believing that the administration was not neutral in their action and was acting to please the other group. Once this impression was formed, many such events happened later which assisted in strengthening this thought
11.   There were three aged women among those arrested and they made definite complaints about their improper arrest and about Human Rights violations before police and in jail
12.   The stopping of Upasna express and the Good train at Kanth could have been avoided because at that time there was not much crowd on the spot and if the train could have gone ahead, such large crowd might not have assembled there, avoiding the DM and stone pelting incidence
13.   Many police and administrative officers anonymously accepted that on many occasions many officers did not protect themselves to the required standard, resulting in their getting hurt. Many officers were negligent in properly wearing helmet and body protector and most of them avoided hand and leg protectors resulting in such injuries
14.   If these people had properly protected themselves then they could have been better placed to face the hostile crowd and many hurried police action could have been avoided

17/07/2014


कांठ प्रकरण पर पीपल’स फोरम द्वारा मौके के अध्ययन



कांठ प्रकरण पर पीपल’स फोरम द्वारा मौके के अध्ययन


प्रस्तावना- पीपल’स फोरम लखनऊ स्थित एक सामाजिक संगठन है जो मूल रूप से लोकजीवन में पारदर्शिता एवं उत्तरदायित्व तथा मानवाधिकार के क्षेत्र में काम करता है. यह अध्ययन मेरे, सामाजिक कार्यकर्ता सलीम बेग, डॉ नूतन ठाकुर, दानिश खान, अभिषेक सिंह आदि द्वारा किया गया है. इसमें दोनों पक्ष के लोगों के अलावा राजनैतिक व्यक्तियों तथा प्रशासन के जिम्मेदार पदाधिकारियों एवं अन्य सजग बुद्धिजीवी संवर्गों से वार्ता तथा पूछताछ कर इस पूरे मामले की वस्तुस्थिति को अकादमिक ढंग से समझने का प्रयास किया गया है. साथ ही भविष्य में इस प्रकार की घटनाओं की पुनरावृत्ति रोकने के लिए सभी सम्बंधित पक्षों के लिए कुछ सुझाव भी दिए गए हैं. इस अध्ययन की विस्तृत रिपोर्ट भारत सरकार तथा उत्तर प्रदेश सरकार को भी सौंपी जायेगी. 

मुख्य निष्कर्ष---

1.       सबसे महत्वपूर्ण निष्कर्ष यह है कि चाहे इसके ऐतिहासिक और सामाजिक कारण जो भी हों पर आज के दिन सच्चाई यही है कि इस पूरे इलाके के लोगों के बीच साम्प्रदायिक भावना और एक प्रकार की अंदरूनी दूरी निरंतर मौजूद रहती है जो मौका पाते ही सतह पर आ जाती है. यह बात इससे स्पष्ट हो जाती है कि एक ही तथ्य (मंदिर और उसके लाउडस्पीकर) के बारे में गांव के दोनों पक्षों ने बिलकुल अलग-अलग बात बतायी. जहां एक पक्ष ने यह कहा कि कई साल से लाउडस्पीकर बजता रहा है वहीँ दूसरे पक्ष ने यहाँ तक कह दिया कि अभी हाल तक मंदिर में बाउंड्री और गेट भी नहीं था और पहले लाउडस्पीकर केवल कुछ ख़ास अवसरों पर ही बजता था 
2.       अतः इन इलाकों में प्रशासन को यह बात स्वीकार करनी चाहिए कि साम्प्रादायिक भावना की जड़ें काफी गहरी हो गयी हैं और उन्हें इसके सम्बन्ध में निरंतर अत्यंत सजग रहना चाहिए
3.       इस घटना से यह भी स्पष्ट होता है कि इन तमाम इलाकों में साम्प्रदायिक भावनाएं दैनिक जीवन की अन्य तमाम बातों और संघर्षों से ज्यादा महत्व रखती हैं और लोग रोजी-रोटी की समस्याओं और दैनिक जीवन से जुडी अन्य तमाम गंभीर समस्याओं और घटनाओं की जगह सांप्रदायिक भावनाओं से कहीं अधिक तेजी से प्रभावित होते हैं.
4.       हमें ऐसी घटनाओं के लिए मात्र राजनैतिक दलों अथवा बाहरी लोगों को ही जिम्मेदार मानते रहने की सोच से निकलना होगा और यह स्वीकार करना होगा कि धार्मिक और साम्प्रदायिक भावनाओं की जड़ें काफी गहरी हैं और आम आदमी तक फैली हुई है
5.       राजनैतिक दल इस सच्चाई से अवगत होने के नाते हमेशा ऐसे अवसरों की तलाश में रहते हैं क्योंकि वे जानते हैं कि गरीब, कम पढ़े-लिखे लोग तेजी से साम्प्रदायिक मुद्दों की तरफ प्रभावित हो जाते हैं जहां आसानी से उनसे जुड़ा जा सकता है जैसा कि कांठ की घटना में भी देखने को मिला. इस मामले को भी राजनैतिक पार्टियों ने अपने हितों के लिए काफी तूल दिया लेकिन उन्हें भी यह मौका तभी मिला जब स्थानीय लोगों ने उन्हें अवसर दिया.
6.       यह घटना एक बार पुनः यह स्पष्ट करती है कि चूँकि राजनैतिक दलों के लिए वोट सबसे अधिक महत्वपूर्ण होता है और वोट के लिए धार्मिक और साम्प्रदायिक भावनाएं सबसे आसान और प्रभावशाली होते हैं अतः वे स्वाभाविक रूप से ऐसे अवसरों की तलाश में निरंतर रहते हैं जिसमे कम मेहनत करके लोगों में अपनी पकड़ बनायी जा सकती है. इस मामले में भी ध्रुवीकरण करने के स्पष्ट प्रयास दिखे. अतः जो मामला आसानी से समाप्त हो सकता था वह राजनैतिक दलों की सहभागिता से अपने आप बड़ा हो गया और राजनैतिक दलों की भंगिमा यह बताती हैं कि मामला अभी थमता नहीं दिख रहा है
7.       चूँकि प्रशासन और राजनैतिक दलों के उद्देश्य अलग-अलग होते हैं और जहां राजनीतक दलों के लिए वोट और लोगों का जुड़ाव महत्वपूर्ण है, वहीँ प्रशासन के लिए क़ानून व्यवस्था और विधि के राज्य की स्थापना, अतः प्रशासनिक अधिकारियों को यह तथ्य स्वीकार करते हुए अपने कार्यों को तदनुसार सम्पादित करना चाहिए और यदि कोई घटना हो जाए तो उसके लिए किसी एक अथवा अनेक राजनैतिक दलों को इंगित करने की जगह अपने कार्यों, योजना और अपनी रणनीति का विश्लेषण करने पर ध्यान देना चाहिए क्योंकि बुनियादी रूप से ही प्रशासन और राजनैतिक दलों के कार्य और उद्देश्य में समानता नहीं होती
8.       इस प्रकरण में कई अवसरों पर कुछ प्रशासनिक अधिकारी इस बुनियादी सिद्धांत को भूल कर अपने कार्यों और रणनीति के विश्लेषण के स्थान पर राजनैतिक दलों की टीका-टिप्पणी करते पाए गए जिससे आसानी से बचा जा सकता था क्योंकि एक तो इसकी कोई आवश्यकता नहीं थी, दूसरे इससे नीचे के प्रशासनिक अधिकारियों को भी अपनी कमियां और गलतियाँ छिपाने के बहाने मिल गए और तीसरे इसने मामले को बढाने में मदद की. अतः इस मामले में जाने-अनजाने कुछ प्रशासनिक अधिकारी अकारण पार्टी बन बैठे जिससे एक पक्ष द्वारा उनकी निष्पक्षता पर प्रश्न लगाए जाने लगे और उनके प्रशासनिक प्रभाव पर भी इसका प्रतिकूल असर पड़ा
9.       भले ही लोगों में आतंरिक सांप्रदायिक भावनाएं थीं और राजनैतिक दल उन्हें बढाने की कोशिश में रहे पर जो भी स्थिति अनियंत्रित हुई, उसमे निश्चित रूप से प्रशासनिक जिम्मेदारी दिखी क्योंकि यह प्रकरण एक लम्बे समय तक चलता रहा था और ऐसे में कई ऐसी बातें थीं जिससे बचा जा सकता था. अतः यदि बेहतर सूझबूझ, अधिक जन संपर्क, स्थानीय लोगों से सीधे अधिक संवाद किया गया होता तो बेहतर परिणाम संभावित थे. जब लाउडस्पीकर लग गया था तो ख़ास कर इस संवेदनशील महीने में यह जानते हुए कि ऐसे मामले संवेदनशील होते हैं उसे तत्काल भारी पुलिस बल के साथ उतारने के कार्य से बचना शायद उचित होता
10.   लाउडस्पीकर उतारने वाले दिन जितना पुलिसबल मौके पर था उसमे यदि ग्रामीण विरोध भी कर रहे थे तो भी उन्हें गिरफ्तार करने का स्पष्ट औचित्य नहीं दिखता है क्योंकि भारी संख्या में पुलिसबल ले जा कर लाउडस्पीकर उतारने और उसके साथ ही महिलाओं सहित लोगों को गिरफ्तार करने से सम्बंधित पक्ष में गलत सन्देश गया और उन्हें ऐसा लगा कि प्रशासन एक पक्ष को संतुष्ट करने के लिए कार्य कर रहा है. इसके कारण एक बार यह जो धारणा बन गयी आगे भी अनेक कारणों से वह बरकरार रही और इसने भी प्रकरण को बढाने में काफी योगदान दिया
11.   जो ग्रामीण महिलाएं गिरफ्तार की गयी थीं उनमे तीन अधेढ़ उम्र की थीं और उन्होंने पुलिस के सामने और जेल में मानवाधिकार उल्लंघन की शिकायतें कीं
12.   उपासना एक्सप्रेस और माल गाड़ी ट्रेन जिस समय कांठ में रोके गए उस समय उन्हें नहीं रोका जाना बेहतर होता क्योंकि उस समय काफी कम भीड़ थी और ये ट्रेन निकल जातीं तो मौके पर उतनी भीड़ नहीं जुटती और डीएम से सम्बंधित घटना और पथराव की घटना से बचा जा सकता था
13.   पुलिस और प्रशासन के कई अधिकारियों ने गोपनीयता की शर्त पर यह बात स्वीकार किया कि कई अवसरों पर कई अधिकारियों ने क़ानून व्यवस्था की नजाकत के अनुसार स्वयं को सुरक्षित करने के उपाय नहीं अपनाया जिसके कारण कई अधिकारी ऐसे घायल हुए जिससे वे आवश्यक सुरक्षा प्रबंध करने पर आसानी से बच सकते थे. यह तथ्य सामने आया कि कई अधिकारी हेलमेट और बॉडी प्रोटेक्टर पहनने में कोताही करते दिखे और बहुतायत में इन लोगों ने हाथ और पैर की सुरक्षा के लिए दिए गए प्रोटेक्टर नहीं पहना जिसके कारण कई सरकारी कर्मी घायल हुए.
14.   यदि इन सभी लोगों ने स्वयं की रक्षा के लिए समुचित सुरक्षा प्रबंध किया होता तो ये अधिक धैर्यपूर्वक मौके की स्थितियों का सामना कर पाते और जब कभी भी चोट लगने, पथराव होने के कारण जिस किसी भी स्तर पर अधीरता दिखाई गयी उससे बचा जा सकता था
                                                                                                                                                               
 17/07/2014                                                                                                                                                        

Friday, July 11, 2014

Letter against obscene graffiti in Railway washrooms



सेवा में,
अध्यक्ष,
रेलवे बोर्ड,
भारत सरकार,
नयी दिल्ली
विषय- भारतीय रेल के विभिन्न ट्रेनों में अत्यंत अश्लील शब्दावली/ चित्र आदि के विषय में
महोदय,
      मैं अमिताभ ठाकुर पेशे से यूपी कैडर का एक आईपीएस अधिकारी हूँ और व्यक्तिगत स्तर पर विभिन्न सामाजिक कार्यों से भी जुड़ा रहता हूँ.

हाल में मैं लखनऊ से दिल्ली गया था और वहां से दिनांक 09/07/2014 को दिल्ली-लखनऊ राजधानी एक्सप्रेस (ट्रेन नंबर 12430), के थर्ड एसी के कोच न० बी9, जिसमे हमारा बर्थ नंबर 25 (पत्नी डॉ नूतन ठाकुर) तथा 28 (मेरा) था, से वापस लखनऊ लौट रहा था.
उस कोच के एक शौचालय में निम्न बात लिखी हुई थी -“लडकियां @@ के लिए हमसे बात करें. 81265-53157 पर, 81265-53157 काल मी. काल करें, B.T.K कर रहा हूँ. मेरी उम्र 22 वर्ष है. मेरा @@ 7 इंच लम्बा और मोटा है.” (@@ का प्रयोग दो अत्यंत अश्लील शब्दों के लिए किया गया है). ऐसा नहीं है कि मैंने इस तरह की लिखी बातें पहले भारतीय रेल में कभी नहीं देखी हो. मैं पूरे देश की बात नहीं जानता पर यूपी और बिहार, जहां मैंने अपने जिन्दगी का ज्यादातर हिस्सा बिताया है, में ट्रेनों के  शौचालयों में इस तरह की गन्दी बातें और तस्वीरें बहुत ज्यादा दिखती रही हैं, यद्यपि यह भी सही है कि ऐसी गन्दी तस्वीरें एसी कोच की तुलना में सेकंड क्लास में ज्यादा संख्या में दिख जाती हैं.
पूर्व में भी कई बार इस तरह की तस्वीर, शब्द आदि देख कर मुझे एक अजीब सी वितृष्णा और नाराजगी होती थी पर इस बार मैंने निश्चित किया कि मैं यह प्रकरण रेलवे के वरिष्ठतम अधिकारियों के संज्ञान में लाऊंगा और उनसे यह अनुरोध करूँगा कि वे इस प्रकार की गंदगी को रेलवे से दूर करने का पुख्ता इंतज़ाम करें. अतः मैंने इन शब्दों की फोटो खींची जिसे मैं इस पत्र के साथ सम्बद्ध कर रहा हूँ.
आप स्वयं सहमत होंगे कि सार्वजनिक स्थानों पर, रेलवे ट्रेन की कोचों में, इस तरह की घटिया, अश्लील और ओछी बातें किसी भी प्रकार से उचित नहीं हैं. ट्रेन में हर प्रकार के और हर उम्र के लोग आते-जाते हैं, महिलायें होती हैं, बच्चे-बच्चियां होते हैं. इसके अलावा कई बार देश-विदेश के लोग भी यात्रा करते हैं. जाहिर है कि जब वे ट्रेन के शौचालय में जाते हैं और वहां ऐसी भद्दी बातें और गन्दी तस्वीरें देखते हैं तो उन्हें किसी भी प्रकार से अच्छा नहीं लगता होगा. सार्वजनिक स्थान पर इस प्रकार की अश्लीलता अपने आप में अपराध और घृणित तो है ही, यह पूरे रेलवे प्रशासन के प्रति भी अनुचित सन्देश देता है.

चूँकि ये सारी ट्रेनें और उसके कोच रेलवे मंत्रालय के सम्पूर्ण नियंत्रण में है जहां रेलवे विभाग के हर प्रकार के स्टाफ काम करते हैं, अतः जब भी कोई व्यक्ति शौचालयों में इस प्रकार की अश्लील टिप्पणी आदि देखता है, चाहे अनचाहे वह सबसे पहले रेलवे विभाग को इसके लिए दोषी और उत्तरदायी समझता है. उसके मन में आता है कि रेलवे विभाग अपने पूर्ण नियंत्रण में रहने वाले इन स्थानों पर इस तरह की गन्दी हरकतों को क्यों नहीं रोकता? और यदि ऐसी हरकतें नहीं रुक पा रही हैं तो कम से कम यह जिम्मेदारी क्यों नहीं लेता कि जिन रेलवे अधिकारियों (कोच कंडक्टर, टीटीई, कोच सहायक आदि) के अधीन वे कोच हैं जिनमे इस तरह की बातें लिखी पायी जाती हैं, उन के खिलाफ कार्यवाही की जाए और उनका इस सम्बन्ध में उत्तरदायित्व नियत किया जाए? साथ ही यह प्रश्न भी प्रत्येक व्यक्ति के जेहन में आता है कि यदि किसी ने छुप-छुपा कर ऐसी गन्दी हरकत कर भी दी तो जब ट्रेन साफ़-सफाई आदि के लिए यार्ड में जाता है तो इस तरफ ध्यान क्यों नहीं दिया जाता है और यदि ऐसी कोई अभद्र टिप्पणी, तस्वीरें आदि दिखती हैं तो उन्हें साफ़ करने की जगह उन्हें जस का तस क्यों छोड़ दिया जाता है ताकि आगे आने वाला हर आदमी उसे जाने-अनजाने पढ़ सके.
आप सहमत होंगे कि शौचालय में कौन क्या कर रहा है इस पर निगाह रखना आसान नहीं है पर आप इस बात से भी सहमत होंगे कि ऐसा करने वाले लोग बहुत अधिक संख्या में नहीं होते और यदि कोच के सम्बंधित स्टाफ को यह जानकारी हो कि इस तरह की बातों पर निगाह रखना भी उनकी जिम्मेदारी में आता है तो वे निश्चित रूप से सजग रहेंगे और इन घटनाओं की पुनरावृत्ति होने की सम्भावना काफी कम हो सकती है. अभी ऐसा लगता है कि इस प्रकार की टिप्पणियाँ आदि रेलवे की प्राथमिकता में बिलकुल नहीं है, जिसके कारण ऐसा करने वालों के हौसले भी बढे रहते हैं और इस प्रकार की अभद्र टिप्पणियाँ/चित्र भारी संख्या में अंकित होते हैं जो सालों-साल यथावत बने रहते हैं, जबकि सार्वजनिक स्थान पर और राजकीय संपत्ति पर इस प्रकार की अश्लील बातें एक आपराधिक कृत्य भी हैं और भारी प्रशासनिक लापरवाही भी.
उपरोक्त तथ्यों के दृष्टिगत मैं आपसे निम्न निवेदन कर रहा हूँ-
1.       रेलवे ट्रेन के शौचालयों तथा अन्य स्थानों पर किसी प्रकार के अश्लील चित्रों/टिप्पणियों/शब्दों आदि की उपस्थिति को सभी स्तरों पर गंभीरता से लेने के कड़े निर्देश निर्गत करें
2.       ट्रेन के शौचालयों और अन्य स्थानों पर ऐसी अश्लील टिप्पणियों आदि की उपस्थिति के विषय में सम्बंधित कोच के स्टाफ की निश्चित जिम्मेदारी और उत्तरदायित्व निर्धारित करने के सम्बन्ध में आवश्यक निर्देश निर्गत करने की कृपा करे
3.       ट्रेन के शौचालयों और अन्य स्थानों पर ऐसी अश्लील टिप्पणियों के अंकित होते ही यार्ड में अगली सफाई आदि होने के समय इन टिप्पणियों/चित्रों आदि को तत्काल हटाये जाने के सम्बन्ध में स्पष्ट निर्देश निर्गत करने की कृपा करें
निवेदन करूँगा कि ये निर्देश महिलाओं, बच्चे-बच्चियों, संवेदनशील नागरिकों सहित समस्त लोगों के लिए सकूनदायक सिद्ध होंगे और वर्तमान में रेलवे द्वारा जिस प्रकार अनजाने में इन आपराधिक कृत्यों में सहभागी की भूमिका निभायी जा रही है, उसे समाप्त करते हुए आम लोगों की निगाहों में भी रेलवे की छवि को बेहतर बनाने में सहायक होंगे.
पत्र संख्या- AT/Rail/Graffiti                                      भवदीय,
दिनांक-11/07/2014
                                                              (
अमिताभ ठाकुर )
                                                           
      5/426, विराम खंड,
                                                           
गोमती नगर, लखनऊ
                                                                                                                                                                 # 94155-34526
                                                                                                                                                amitabhthakurlko@gmail.com